मौलाना
बहुत मैं ने सुनी है आप की तक़रीर मौलाना मगर बदली नहीं अब तक मिरी तक़दीर मौलाना ख़ुदारा शुक्र की तल्क़ीन अपने पास ही रक्खें ये लगती है मिरे सीने पे बन कर तीर मौलाना नहीं मैं बोल सकता झूट इस दर्जा ढिटाई से यही है जुर्म मेरा और यही तक़्सीर मौलाना हक़ीक़त क्या है ये तो आप जानें या ख़ुदा जाने सुना है जिम्मी-कार्टर आप का है पीर मौलाना ज़मीनें हों वडेरों की मशीनें हों लुटेरों की ख़ुदा ने लिख के दी है ये तुम्हें तहरीर मौलाना करोड़ों क्यूँ नहीं मिल कर फ़िलिस्तीं के लिए लड़ते दुआ ही से फ़क़त कटती नहीं ज़ंजीर मौलाना

Read Next