रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले! लोचनों में क्या मदिर नव? देख जिसकी नीड़ की सुधि फूट निकली बन मधुर रव! झूलते चितवन गुलाबी-...
स्मित तुम्हारी से छलक यह ज्योत्स्ना अम्लान, जान कब पाई हुआ उसका कहां निर्माण! अचल पलकों में जड़ी सी तारकायें दीन, ढूँढती अपना पता विस्मित निमेषविहीन।...
प्रिय ! सान्ध्य गगन मेरा जीवन! यह क्षितिज बना धुँधला विराग, नव अरुण अरुण मेरा सुहाग,...
क्या न तुमने दीप बाला? क्या न इसके शीन अधरों- से लगाई अमर ज्वाला? अगम निशि हो यह अकेला,...
आओ, प्यारे तारो आओ तुम्हें झुलाऊँगी झूले में, तुम्हें सुलाऊँगी फूलों में, तुम जुगनू से उड़कर आओ,...
वे मुस्काते फूल, नहीं जिनको आता है मुर्झाना, वे तारों के दीप, नहीं जिनको भाता है बुझ जाना; ...
ठंडे पानी से नहलातीं, ठंडा चंदन इन्हें लगातीं, इनका भोग हमें दे जातीं, फिर भी कभी नहीं बोले हैं।...
मेह बरसने वाला है मेरी खिड़की में आ जा तितली। बाहर जब पर होंगे गीले, धुल जाएँगे रंग सजीले,...
बया हमारी चिड़िया रानी! तिनके लाकर महल बनाती, ऊँची डाली पर लटकाती, खेतों से फिर दाना लाती,...
मधुरिमा के, मधु के अवतार सुधा से, सुषमा से, छविमान, आंसुओं में सहमे अभिराम तारकों से हे मूक अजान!...
क्या पूजन क्या अर्चन रे! उस असीम का सुंदर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे! मेरी श्वासें करती रहतीं नित प्रिय का अभिनंदन रे! पद रज को धोने उमड़े आते लोचन में जल कण रे!...
उर तिमिरमय घर तिमिरमय चल सजनि दीपक बार ले! राह में रो रो गये हैं रात और विहान तेरे...
उर तिमिरमय घर तिमिरमय चल सजनि दीपक बार ले! राह में रो रो गये हैं रात और विहान तेरे...
दीपक अब रजनी जाती रे जिनके पाषाणी शापों के तूने जल जल बंध गलाए रंगों की मूठें तारों के ...
क्यों इन तारों को उलझाते? अनजाने ही प्राणों में क्यों आ आ कर फिर जाते? पल में रागों को झंकृत कर,...
किन उपकरणों का दीपक, किसका जलता है तेल? किसकि वर्त्ति, कौन करता इसका ज्वाला से मेल?...
शलभ मैं शपमय वर हूँ! किसी का दीप निष्ठुर हूँ! ताज है जलती शिखा; चिनगारियाँ शृंगारमाला;...
वे मधु दिन जिनकी स्मृतियों की धुँधली रेखायें खोईं, चमक उठेंगे इन्द्रधनुष से मेरे विस्मृति के घन में!...
अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है! यह न समझो देव पूजा के सजीले उपकरण ये, यह न मानो अमरता से माँगने आए शरण ये, स्वाति को खोजा नहीं है औ' न सीपी को पुकारा,...
सजनि कौन तम में परिचित सा, सुधि सा, छाया सा, आता? सूने में सस्मित चितवन से जीवन-दीप जला जाता! छू स्मृतियों के बाल जगाता, मूक वेदनायें दुलराता,...
अलि अब सपने की बात- हो गया है वह मधु का प्रात! जब मुरली का मृदु पंचम स्वर, कर जाता मन पुलकित अस्थिर,...
क्या जलने की रीति शलभ समझा दीपक जाना घेरे हैं बंदी दीपक को ज्वाला की वेला दीन शलभ भी दीप शिखा से...
मै अनंत पथ में लिखती जो सस्मित सपनों की बाते उनको कभी न धो पायेंगी अपने आँसू से रातें!...
धूप सा तन दीप सी मैं! उड़ रहा नित एक सौरभ-धूम-लेखा में बिखर तन, खो रहा निज को अथक आलोक-सांसों में पिघल मन अश्रु से गीला सृजन-पल,...
जो मुखरित कर जाती थीं मेरा नीरव आवाहन, मैं नें दुर्बल प्राणों की वह आज सुला दी कंपन!...
आँधी आई जोर शोर से, डालें टूटी हैं झकोर से। उड़ा घोंसला अंडे फूटे, किससे दुख की बात कहेगी!...
मैं नीर भरी दुख की बदली! स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा क्रन्दन में आहत विश्व हँसा नयनों में दीपक से जलते,...
बताता जा रे अभिमानी! कण-कण उर्वर करते लोचन स्पन्दन भर देता सूनापन जग का धन मेरा दुख निर्धन...
चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना! जाग तुझको दूर जाना! अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प हो ले! या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;...
तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या! तारक में छवि, प्राणों में स्मृति पलकों में नीरव पद की गति लघु उर में पुलकों की संस्कृति...
जब यह दीप थके तब आना। यह चंचल सपने भोले है, दृग-जल पर पाले मैने, मृदु पलकों पर तोले हैं;...
प्रिय चिरंतन है सजनि, क्षण-क्षण नवीन सुहासिनी मै! श्वास में मुझको छिपाकर वह असीम विशाल चिर घन शून्य में जब छा गया उसकी सजीली साध-सा बन,...
अलि, मैं कण-कण को जान चली सबका क्रन्दन पहचान चली जो दृग में हीरक-जल भरते जो चितवन इन्द्रधनुष करते...
मेरा सजल मुख देख लेते! यह करुण मुख देख लेता! सेतु शूलों का बना बाँधा विरह-वारीश का जल फूल की पलकें बनाकर प्यालियाँ बाँटा हलाहल!...
विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात! वेदना में जन्म करुणा में मिला आवास अश्रु चुनता दिवस इसका; अश्रु गिनती रात; जीवन विरह का जलजात!...
यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो रजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर, गये आरती वेला को शत-शत लय से भर, जब था कल कंठो का मेला,...