अधिकार
वे मुस्काते फूल, नहीं जिनको आता है मुर्झाना, वे तारों के दीप, नहीं जिनको भाता है बुझ जाना; वे नीलम के मेघ, नहीं जिनको है घुल जाने की चाह वह अनन्त रितुराज,नहीं जिसने देखी जाने की राह| वे सूने से नयन,नहीं जिनमें बनते आँसू मोती, वह प्राणों की सेज,नही जिसमें बेसुध पीड़ा सोती; ऐसा तेरा लोक, वेदना नहीं,नहीं जिसमें अवसाद, जलना जाना नहीं, नहीं जिसने जाना मिटने का स्वाद! क्या अमरों का लोक मिलेगा तेरी करुणा का उपहार? रहने दो हे देव! अरे यह मेरा मिटने का अधिकार!

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