धूप सा तन दीप सी मैं
धूप सा तन दीप सी मैं! उड़ रहा नित एक सौरभ-धूम-लेखा में बिखर तन, खो रहा निज को अथक आलोक-सांसों में पिघल मन अश्रु से गीला सृजन-पल, औ' विसर्जन पुलक-उज्ज्वल, आ रही अविराम मिट मिट स्वजन ओर समीप सी मैं! सघन घन का चल तुरंगम चक्र झंझा के बनाये, रश्मि विद्युत ले प्रलय-रथ पर भले तुम श्रान्त आये, पंथ में मृदु स्वेद-कण चुन, छांह से भर प्राण उन्मन, तम-जलधि में नेह का मोती रचूंगी सीप सी मैं! धूप-सा तन दीप सी मैं!

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