दो चार गाम राह को हमवार देखना फिर हर क़दम पे इक नई दीवार देखना आँखों की रौशनी से है हर संग आईना हर आइने में ख़ुद को गुनहगार देखना...
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे...
न जाने कौन सा मंज़र नज़र में रहता है तमाम उम्र मुसाफ़िर सफ़र में रहता है लड़ाई देखे हुए दुश्मनों से मुमकिन है मगर वो ख़ौफ़ जो दीवार ओ दर में रहता है...
नीली पीली हरी गुलाबी मैं ने सब रंगीन नक़ाबें अपनी जेबों में भर ली हैं अब मेरा चेहरा नंगा है...
मुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन सदियों सदियों वही तमाशा रस्ता रस्ता लम्बी खोज लेकिन जब हम मिल जाते हैं खो जाता है जाने कौन...
हर तरफ़ हर जगह बे-शुमार आदमी फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी सुब्ह से शाम तक बोझ ढोता हुआ अपनी ही लाश का ख़ुद मज़ार आदमी...
दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती कुछ लोग यूँही शहर में हम से भी ख़फ़ा हैं हर एक से अपनी भी तबीअत नहीं मिलती...
अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाए घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए जिन चराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं उन चराग़ों को हवाओं से बचाया जाए...
बड़े बड़े ग़म खड़े हुए थे रस्ता रोके राहों में छोटी छोटी ख़ुशियों से ही हम ने दिल को शाद किया...
जब भी किसी ने ख़ुद को सदा दी सन्नाटों में आग लगा दी मिट्टी उस की पानी उस का जैसी चाही शक्ल बना दी...
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई फिर यूँ हुआ कि वक़्त का पाँसा पलट गया उम्मीद जीत की थी मगर मात हो गई...
मिरे कुर्ते की बूढ़ी जेब से कल तुम्हारी याद!! चुपके से निकल कर सड़क के शोर-ओ-गुल में खो गई है...
उठ के कपड़े बदल घर से बाहर निकल जो हुआ सो हुआ रात के ब'अद दिन आज के ब'अद कल जो हुआ सो हुआ जब तलक साँस है भूक है प्यास है ये ही इतिहास है रख के काँधे पे हल खेत की ओर चल जो हुआ सो हुआ...
कभी कभी यूँ भी हम ने अपने जी को बहलाया है जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है हम से पूछो इज़्ज़त वालों की इज़्ज़त का हाल कभी हम ने भी इक शहर में रह कर थोड़ा नाम कमाया है...
किसी भी शहर में जाओ कहीं क़याम करो कोई फ़ज़ा कोई मंज़र किसी के नाम करो दुआ सलाम ज़रूरी है शहर वालों से मगर अकेले में अपना भी एहतिराम करो...
न जाने कौन वो बहरूपिया है जो हर शब मिरी थकी हुई पलकों की सब्ज़ छाँव में तरह तरह के करिश्मे दिखाया करता है...