उठ के कपड़े बदल घर से बाहर निकल जो हुआ सो हुआ
उठ के कपड़े बदल घर से बाहर निकल जो हुआ सो हुआ रात के ब'अद दिन आज के ब'अद कल जो हुआ सो हुआ जब तलक साँस है भूक है प्यास है ये ही इतिहास है रख के काँधे पे हल खेत की ओर चल जो हुआ सो हुआ ख़ून से तर-ब-तर कर के हर रहगुज़र थक चुके जानवर लकड़ियों की तरह फिर से चूल्हे में जल जो हुआ सो सिवा जो मरा क्यूँ मरा जो लुटा क्यूँ लुटा जो जला क्यूँ जला मुद्दतों से हैं गुम इन सवालों के हल जो हुआ सो हुआ मंदिरों में भजन मस्जिदों में अज़ाँ आदमी है कहाँ आदमी के लिए एक ताज़ा ग़ज़ल जो हुआ सो हुआ

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