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यूँ भी हज़ारों लाखों में तुम इंतिख़ाब हो पूरा करो सवाल तो फिर ला-जवाब हो...

सुन के मिरा फ़साना उन्हें लुत्फ़ आ गया सुनता हूँ अब कि रोज़ तलब क़िस्सा-ख़्वाँ की है...

डरता हूँ देख कर दिल-ए-बे-आरज़ू को मैं सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गया...

रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा मुक़ीम कौन हुआ है मक़ाम किस का था...

निगह निकली न दिल की चोर ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं निकली इधर ला हाथ मुट्ठी खोल ये चोरी यहीं निकली...

साज़ ये कीना-साज़ क्या जानें नाज़ वाले नियाज़ क्या जानें...

साथ शोख़ी के कुछ हिजाब भी है इस अदा का कहीं जवाब भी है...

देखना अच्छा नहीं ज़ानू पे रख कर आइना दोनों नाज़ुक हैं न रखियो आईने पर आइना...

मर्ग-ए-दुश्मन का ज़ियादा तुम से है मुझ को मलाल दुश्मनी का लुत्फ़ शिकवों का मज़ा जाता रहा...

जोश-ए-रहमत के वास्ते ज़ाहिद है ज़रा सी गुनाह-गारी शर्त...

बात का ज़ख़्म है तलवार के ज़ख़्मों से सिवा कीजिए क़त्ल मगर मुँह से कुछ इरशाद न हो...

चाह की चितवन में आँख उस की शरमाई हुई ताड़ ली मज्लिस में सब ने सख़्त रुस्वाई हुई...

क्या क्या फ़रेब दिल को दिए इज़्तिराब में उन की तरफ़ से आप लिखे ख़त जवाब में...

उन की फ़रमाइश नई दिन रात है और थोड़ी सी मिरी औक़ात है...

आती है बात बात मुझे बार बार याद कहता हूँ दौड़ दौड़ के क़ासिद से राह में...

ख़ार-ए-हसरत बयान से निकला दिल का काँटा ज़बान से निकला...

आप का ए'तिबार कौन करे रोज़ का इंतिज़ार कौन करे...

इक अदा मस्ताना सर से पाँव तक छाई हुई उफ़ तिरी काफ़िर जवानी जोश पर आई हुई...

हो सके क्या अपनी वहशत का इलाज मेरे कूचे में भी सहरा चाहिए...

जो तुम्हारी तरह तुम से कोई झूटे वादे करता तुम्हीं मुंसिफ़ी से कह दो तुम्हें ए'तिबार होता...

क्यूँ वस्ल की शब हाथ लगाने नहीं देते माशूक़ हो या कोई अमानत हो किसी की...

इस लिए वस्ल से इंकार है हम जान गए ये न समझे कोई क्या जल्द कहा मान गए...

उस के दर तक किसे रसाई है वो ही जाएगा जिस की आई है बात इक दिल में मेरे आई है गर कहूँ तो अभी लड़ाई है...

दिल गया तुम ने लिया हम क्या करें जाने वाली चीज़ का ग़म क्या करें हम ने मर कर हिज्र में पाई शिफ़ा ऐसे अच्छों का वो मातम क्या करें...

ना-उमीदी बढ़ गई है इस क़दर आरज़ू की आरज़ू होने लगी...

बहुत रोया हूँ मैं जब से ये मैं ने ख़्वाब देखा है कि आप आँसू बहाते सामने दुश्मन के बैठे हैं...

नासेह ने मेरा हाल जो मुझ से बयाँ किया आँसू टपक पड़े मिरे बे-इख़्तियार आज...

कुछ लाग कुछ लगाओ मोहब्बत में चाहिए दोनों तरह का रंग तबीअत में चाहिए ये क्या कि बुत बने हुए बैठे हो बज़्म में कुछ बे-तकल्लुफ़ी भी तो ख़ल्वत में चाहिए...

मिन्नतों से भी न वो हूर-शमाइल आया किस जगह आँख लड़ी हाए कहाँ दिल आया हम न कहते थे न कर इश्क़ पशीमाँ होगा जो किया तू ने वो आगे तिरे ऐ दिल आया...

तुम को चाहा तो ख़ता क्या है बता दो मुझ को दूसरा कोई तो अपना सा दिखा दो मुझ को...

क्या तर्ज़-ए-कलाम हो गई है हर बात पयाम हो गई है कुछ ज़हर न थी शराब-ए-अंगूर क्या चीज़ हराम हो गई है...

जब वो बुत हम-कलाम होता है दिल ओ दीं का पयाम होता है उन से होता है सामना जिस दिन दूर ही से सलाम होता है...

दिल चुरा कर नज़र चुराई है लुट गए लुट गए दुहाई है एक दिन मिल के फिर नहीं मिलते किस क़यामत की ये जुदाई है...

ख़बर सुन कर मिरे मरने की वो बोले रक़ीबों से ख़ुदा बख़्शे बहुत सी ख़ूबियाँ थीं मरने वाले में...

उन के इक जाँ-निसार हम भी हैं हैं जहाँ सौ हज़ार हम भी हैं तुम भी बेचैन हम भी हैं बेचैन तुम भी हो बे-क़रार हम भी हैं...

कल तक तो आश्ना थे मगर आज ग़ैर हो दो दिन में ये मिज़ाज है आगे की ख़ैर हो...

इलाही क्यूँ नहीं उठती क़यामत माजरा क्या है हमारे सामने पहलू में वो दुश्मन के बैठे हैं...

साक़िया तिश्नगी की ताब नहीं ज़हर दे दे अगर शराब नहीं...

ग़श खा के 'दाग़' यार के क़दमों पे गिर पड़ा बेहोश ने भी काम किया होशियार का...

ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा अपने दिल को भी बताऊँ न ठिकाना तेरा सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा...