निगह निकली न दिल की चोर ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं निकली इधर ला हाथ मुट्ठी खोल ये चोरी यहीं निकली...
मर्ग-ए-दुश्मन का ज़ियादा तुम से है मुझ को मलाल दुश्मनी का लुत्फ़ शिकवों का मज़ा जाता रहा...
जो तुम्हारी तरह तुम से कोई झूटे वादे करता तुम्हीं मुंसिफ़ी से कह दो तुम्हें ए'तिबार होता...
उस के दर तक किसे रसाई है वो ही जाएगा जिस की आई है बात इक दिल में मेरे आई है गर कहूँ तो अभी लड़ाई है...
दिल गया तुम ने लिया हम क्या करें जाने वाली चीज़ का ग़म क्या करें हम ने मर कर हिज्र में पाई शिफ़ा ऐसे अच्छों का वो मातम क्या करें...
बहुत रोया हूँ मैं जब से ये मैं ने ख़्वाब देखा है कि आप आँसू बहाते सामने दुश्मन के बैठे हैं...
कुछ लाग कुछ लगाओ मोहब्बत में चाहिए दोनों तरह का रंग तबीअत में चाहिए ये क्या कि बुत बने हुए बैठे हो बज़्म में कुछ बे-तकल्लुफ़ी भी तो ख़ल्वत में चाहिए...
मिन्नतों से भी न वो हूर-शमाइल आया किस जगह आँख लड़ी हाए कहाँ दिल आया हम न कहते थे न कर इश्क़ पशीमाँ होगा जो किया तू ने वो आगे तिरे ऐ दिल आया...
क्या तर्ज़-ए-कलाम हो गई है हर बात पयाम हो गई है कुछ ज़हर न थी शराब-ए-अंगूर क्या चीज़ हराम हो गई है...
जब वो बुत हम-कलाम होता है दिल ओ दीं का पयाम होता है उन से होता है सामना जिस दिन दूर ही से सलाम होता है...
दिल चुरा कर नज़र चुराई है लुट गए लुट गए दुहाई है एक दिन मिल के फिर नहीं मिलते किस क़यामत की ये जुदाई है...
ख़बर सुन कर मिरे मरने की वो बोले रक़ीबों से ख़ुदा बख़्शे बहुत सी ख़ूबियाँ थीं मरने वाले में...
उन के इक जाँ-निसार हम भी हैं हैं जहाँ सौ हज़ार हम भी हैं तुम भी बेचैन हम भी हैं बेचैन तुम भी हो बे-क़रार हम भी हैं...
इलाही क्यूँ नहीं उठती क़यामत माजरा क्या है हमारे सामने पहलू में वो दुश्मन के बैठे हैं...
ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा अपने दिल को भी बताऊँ न ठिकाना तेरा सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा...