बरषा सिर पर आ गई हरी हुई सब भूमि बागों में झूले पड़े, रहे भ्रमण-गण झूमि करके याद कुटुंब की फिरे विदेशी लीग बिछड़े प्रीतमवालियों के सिर पर छाया सोग...
जगत में घर की फूट बुरी। घर की फूटहिं सो बिनसाई, सुवरन लंकपुरी। फूटहिं सो सब कौरव नासे, भारत युद्ध भयो। जाको घाटो या भारत मैं, अबलौं नाहिं पुज्यो।...
रोकहिं जौं तो अमंगल होय, औ प्रेम नसै जै कहैं पिय जाइए। जौं कहैं जाहु न तौ प्रभुता, जौ कछु न तौ सनेह नसाइए। जौं 'हरिचंद' कहै तुम्हरे बिन जीहै न, तौ यह क्यों पतिआईए। तासौं पयान समै तुम्हरे, हम का कहैं आपै हमें समझाइए।...
धन्य ये मुनि वृन्दाबन बासी। दरसन हेतु बिहंगम ह्वै रहे, मूरति मधुर उपासी। नव कोमल दल पल्लव द्रुम पै, मिलि बैठत हैं आई। नैनन मूँदि त्यागि कोलाहल, सुनहिं बेनु धुनि माई।...
मारग प्रेम को को समझै 'हरिचंद' यथारथ होत यथा है। लाभ कछू न पुकारन में बदनाम ही होने की सारी कथा है। जानत है जिय मेरो भला बिधि और उपाय सबै बिरथा है। बावरे हैं ब्रज के सगरे मोहिं नाहक पूछत कौन विधा है।...
चना जोर गरम। चना बनावैं घासी राम। जिनकी झोली में दूकान॥ चना चुरमुर-चुरमुर बोलै। बाबू खाने को मुँह खोलै॥ चना खावैं तोकी मैना। बोलैं अच्छा बना चबैना॥...