बनें बनायें किन्तु बिगड़ती बात बनावें। हँसें हँसावें किन्तु हँसी अपनी न करावें। बहक बहँकते रहें पर न रुचि को बहँकावें। खुल खेलें, पर खेल खोल आँखों को पावें।...
रचती है कविता-सुधा सुधासिक्त अवलेह। लहता है रससिध्द कवि अजर अमर यश-देह॥ चीरजीवी हैं सुकवि जन सब रस-सिध्द समान। उक्ति सजीवन जड़ी को कर सजीवता दान॥...
पड़ने लगती है पियूष की शिर पर धारा। हो जाता है रुचिर ज्योति मय लोचन-तारा। बर बिनोद की लहर हृदय में है लहराती। कुछ बिजली सी दौड़ सब नसों में है जाती।...
उसके ऐसा है नहीं अपनापन में आन। पिता आपही अवनि में हैं अपना उपमान।1। मिले न खोजे भी कहीं खोजा सकल जहान। माता सी ममतामयी पाता पिता समान।2।...
बन भोले क्यों भोले भाले कहलावें। सब भूलें पर अपने को भूल न जावें। क्या अब न हमें है आन बान से नाता। क्या कभी नहीं है चोट कलेजा खाता।...
प्यार के साथ सुधाधाार पिलाने वाली। जी-कली भाव विविधा संग खिलाने वाली। नागरी-बेलि नवल सींच जिलाने वाली। नीरसों मधय सरसतादि मिलाने वाली।...
मैं घमण्डों में भरा ऐंठा हुआ। एक दिन जब था मुण्डेरे पर खड़ा। आ अचानक दूर से उड़ता हुआ। एक तिनका आँख में मेरी पड़ा॥...
जलप्रवाह में एक काठ का टुकड़ा बहता जाता था। उसे देख कर बार बार यह मेरे जी में आता था। पाहन लौं किसलिए उसे भी नहीं डुबाती जल-धारा। एक किसलिए प्रतिद्वन्दी है और दूसरा है प्यारा।...