कविकीर्ति
रचती है कविता-सुधा सुधासिक्त अवलेह। लहता है रससिध्द कवि अजर अमर यश-देह॥ चीरजीवी हैं सुकवि जन सब रस-सिध्द समान। उक्ति सजीवन जड़ी को कर सजीवता दान॥ अमल धावल आनन्द मय सुधा सिता सुमिलाप। है कमनीय मयंक सम कविकुल कीर्ति कलाप॥ गौरव-केतन से लसित अनुपम-रत्न उपेत। अमर-निकेतन तुल्य हैं कविकुल कीर्ति-निकेत॥ मानस-अभिनन्दन, अमर, नन्दन बन वर कुंज। है पावन प्रतिपति मय कवि पुंगव यश पुंज॥

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