बागी
निर्मम नाता तोड़ जगत का अमरपुरी की ओर चले, बन्धन-मुक्ति न हुई, जननि की गोद मधुरतम छोड़ चले। जलता नन्दन-वन पुकारता, मधुप! कहाँ मुँह मोड़ चले? बिलख रही यशुदा, माधव! क्यों मुरली मंजु मरोड़ चले? उबल रहे सब सखा, नाश की उद्धत एक हिलोर चले; पछताते हैं वधिक, पाप का घड़ा हमारा फोड़ चले। माँ रोती, बहनें कराहतीं, घर-घर व्याकुलता जागी, उपल-सरीखे पिघल-पिघल तुम किधर चले मेरे बागी? (बोरस्टल जेल के शहीद यतीन्द्रनाथ दास की मृत्यु पर)

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