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दादा बड़े भोले थे सब से यही कहते थे कुछ ज़हर भी होता है अंग्रेज़ी दवाओं में...

जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा...

हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी हिरन की पीठ पर बैठे परिंदे की शरारत सी वो जैसे सर्दियों में गर्म कपड़े दे फ़क़ीरों को लबों पे मुस्कुराहट थी मगर कैसी हक़ारत सी...

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा...

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे...

उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं घने धुएँ में फ़रिश्ते भी आँख मलते हैं तमाम रात खुजूरों के पेड़ जुलते हैं...

ख़ानदानी रिश्तों में अक्सर रक़ाबत है बहुत घर से निकलो तो ये दुनिया ख़ूबसूरत है बहुत अपने कॉलेज में बहुत मग़रूर जो मशहूर है दिल मिरा कहता है उस लड़की में चाहत है बहुत...

जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाए रात भर भेजा वही काग़ज़ उसे हम ने लिखा कुछ भी नहीं...

उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते...

ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे रोएँगे बहुत लेकिन आँसू नहीं आएँगे...

चराग़ों को आँखों में महफ़ूज़ रखना बड़ी दूर तक रात ही रात होगी...

पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा...

फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा...

एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिला जाने कितनी औरतों की बद-दुआएँ साथ हैं...

मेरी आँखों में तिरे प्यार का आँसू आए कोई ख़ुशबू मैं लगाऊँ तिरी ख़ुशबू आए वक़्त-ए-रुख़्सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए हार पहनाने मुझे फूल से बाज़ू आए...

वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे...

प्यार की नई दस्तक दिल पे फिर सुनाई दी चाँद सी कोई सूरत ख़्वाब में दिखाई दी किस ने मेरी पलकों पे तितलियों के पर रखे आज अपनी आहट भी देर तक सुनाई दी...

मैं यूँ भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ कोई मासूम क्यूँ मेरे लिए बदनाम हो जाए...

मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा आग से आग बुझा फूल खिला जाम उठा...

कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा मुझे मालूम है क़िस्मत का लिक्खा भी बदलता है...

तुम अभी शहर में क्या नए आए हो रुक गए राह में हादसा देख कर...

शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ आँखें मिरी भीगी हुई चेहरा तिरा उतरा हुआ...

नज़र से गुफ़्तुगू ख़ामोश लब तुम्हारी तरह ग़ज़ल ने सीखे हैं अंदाज़ सब तुम्हारी तरह जो प्यास तेज़ हो तो रेत भी है चादर-ए-आब दिखाई दूर से देते हैं सब तुम्हारी तरह...

मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा परिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाए...

भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिजक गई...

सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत...

हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में...

जब तक निगार-ए-दाश्त का सीना दुखा न था सहरा में कोई लाला-ए-सहरा खिला न था दो झीलें उस की आँखों में लहरा के सो गईं उस वक़्त मेरी उम्र का दरिया चढ़ा न था...

हक़ीक़तों में ज़माना बहुत गुज़ार चुके कोई कहानी सुनाओ बड़ा अँधेरा है...