हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी हिरन की पीठ पर बैठे परिंदे की शरारत सी वो जैसे सर्दियों में गर्म कपड़े दे फ़क़ीरों को लबों पे मुस्कुराहट थी मगर कैसी हक़ारत सी...
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं घने धुएँ में फ़रिश्ते भी आँख मलते हैं तमाम रात खुजूरों के पेड़ जुलते हैं...
ख़ानदानी रिश्तों में अक्सर रक़ाबत है बहुत घर से निकलो तो ये दुनिया ख़ूबसूरत है बहुत अपने कॉलेज में बहुत मग़रूर जो मशहूर है दिल मिरा कहता है उस लड़की में चाहत है बहुत...
मेरी आँखों में तिरे प्यार का आँसू आए कोई ख़ुशबू मैं लगाऊँ तिरी ख़ुशबू आए वक़्त-ए-रुख़्सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए हार पहनाने मुझे फूल से बाज़ू आए...
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे...
प्यार की नई दस्तक दिल पे फिर सुनाई दी चाँद सी कोई सूरत ख़्वाब में दिखाई दी किस ने मेरी पलकों पे तितलियों के पर रखे आज अपनी आहट भी देर तक सुनाई दी...
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा मुझे मालूम है क़िस्मत का लिक्खा भी बदलता है...
नज़र से गुफ़्तुगू ख़ामोश लब तुम्हारी तरह ग़ज़ल ने सीखे हैं अंदाज़ सब तुम्हारी तरह जो प्यास तेज़ हो तो रेत भी है चादर-ए-आब दिखाई दूर से देते हैं सब तुम्हारी तरह...
भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिजक गई...
जब तक निगार-ए-दाश्त का सीना दुखा न था सहरा में कोई लाला-ए-सहरा खिला न था दो झीलें उस की आँखों में लहरा के सो गईं उस वक़्त मेरी उम्र का दरिया चढ़ा न था...