Meeraji
( 1912 - 1949 )

Meeraji (Hindi: मीराजी) was an eminent Urdu poet. He lived the life of a bohemian, working only intermittently. More

दीदा-ए-अश्क-बार है अपना और दिल बे-क़रार है अपना रश्क-ए-सहरा है घर की वीरानी यही रंग-ए-बहार है अपना...

नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया क्या है तेरा क्या है मेरा अपना पराया भूल गया क्या भूला कैसे भूला क्यूँ पूछते हो बस यूँ समझो कारन दोश नहीं है कोई भूला भाला भूल गया...

'मीर' मिले थे 'मीरा-जी' से बातों से हम जान गए फ़ैज़ का चश्मा जारी है हिफ़्ज़ उन का भी दीवान करें...

गुनाहों से नश्व-ओ-नुमा पा गया दिल दर-ए-पुख़्ता-कारी पे पहुँचा गया दिल अगर ज़िंदगी मुख़्तसर थी तो फिर क्या इसी में बहुत ऐश करता गया दिल...

फ़ुज़ूल है ये गुफ़्तुगू है निगाह देखती है ताक़ में रखी हैं चंद बोतलें चलो चलें...

रात अँधेरी बन है सूना कोई नहीं है साथ पवन झकोले पेड़ हिलाएँ थर-थर काँपें पात दिल में डर का तीर चुभा है सीने पर है हाथ रह रह कर सोचूँ यूँ कैसे पूरी होगी रात...

रात के अक्स-ए-तख़य्युल से मुलाक़ात हो जिस का मक़्सूद कभी दरवाज़े से आता है कभी खिड़की से और हर बार नए भेस में दर आता है उस को इक शख़्स समझना तो मुनासिब ही नहीं...

ढब देखे तो हम ने जाना दिल में धुन भी समाई है 'मीरा-जी' दाना तो नहीं है आशिक़ है सौदाई है सुब्ह सवेरे कौन सी सूरत फुलवारी में आई है डाली डाली झूम उठी है कली कली लहराई है...

हँसो तो साथ हँसेंगी दुनिया बैठ अकेले रोना होगा चुपके चुपके बहा कर आँसू दिल के दुख को धोना होगा बैरन रीत बड़ी दुनिया की आँख से जो भी टपका मोती पलकों ही से उठाना होगा पलकों ही से पिरोना होगा...

क़दम क़दम पर जनाज़े रक्खे हुए हैं इन को उठाओ जाओ ये देखते क्या हो काम मेरा नहीं तुम्हारा ये काम है आज और कल का तुम आज में महव हो के शायद ये सोचते हो न बीता कल और न आने वाला तुम्हारा कल है...