गुनाहों से नश्व-ओ-नुमा पा गया दिल
गुनाहों से नश्व-ओ-नुमा पा गया दिल दर-ए-पुख़्ता-कारी पे पहुँचा गया दिल अगर ज़िंदगी मुख़्तसर थी तो फिर क्या इसी में बहुत ऐश करता गया दिल ये नन्ही सी वुसअत ये नादान हस्ती नए से नया भेद कहता गया दिल न था कोई माबूद पर रफ़्ता रफ़्ता ख़ुद अपना ही माबूद बनता गया दिल नहीं गिर्या ओ ख़ंदा में फ़र्क़ कोई जो रोता गया दिल तो हँसता गया दिल बजाए दिल इक तल्ख़ आँसू रहेगा अगर उन की महफ़िल में आया गया दिल परेशाँ रहा आप तो फ़िक्र क्या है मिला जिस से भी उस को बहला गया दिल कई राज़ पिन्हाँ हैं लेकिन खुलेंगे अगर हश्र के रोज़ पकड़ा गया दिल बहुत हम भी चालाक बनते थे लेकिन हमें बातों बातों में बहका गया दिल कही बात जब काम की 'मीरा-जी' ने वहीं बात को झट से पल्टा गया दिल

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