सोहबत-ए-ग़ैर मूं जाया न करो
सोहबत-ए-ग़ैर मूं जाया न करो दर्द-मंदाँ कूँ कुढ़ाया न करो हक़-परस्ती का अगर दावा है बे-गुनाहाँ कूँ सताया न करो अपनी ख़ूबी के अगर तालिब हो अपने तालिब कूँ जलाया न करो है अगर ख़ातिर-ए-उश्शाक़ अज़ीज़ ग़ैर कूँ दर्स दिखाया न करो मुझ को तुरशी का है परहेज़ सनम चीन-ए-अबरू कूँ दिखाया न करो दिल कूँ होती है सजन बेताबी ज़ुल्फ़ कूँ हाथ लगाया न करो निगह-ए-तल्ख़ सूँ अपनी ज़ालिम ज़हर का जाम पिलाया न करो हम कूँ बर्दाश्त नहीं ग़ुस्से की बे-सबब ग़ुस्से में आया न करो पाक-बाज़ाँ में है मशहूर 'वली' उस सूँ चेहरे कूँ छुपाया न करो

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