इन आँखों ने क्या क्या तमाशा न देखा हक़ीक़त में जो देखना था न देखा तुझे देख कर वो दुई उठ गई है कि अपना भी सानी न देखा न देखा...
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं तेवर तिरे ऐ रश्क-ए-क़मर देख रहे हैं हम शाम से आसार-ए-सहर देख रहे हैं...
साफ़ कब इम्तिहान लेते हैं वो तो दम दे के जान लेते हैं यूँ है मंज़ूर ख़ाना-वीरानी मोल मेरा मकान लेते हैं...
मोहब्बत का असर जाता कहाँ है हमारा दर्द-ए-सर जाता कहाँ है दिल-ए-बेताब सीने से निकल कर चला है तू किधर जाता कहाँ है...
आरज़ू है वफ़ा करे कोई जी न चाहे तो क्या करे कोई गर मरज़ हो दवा करे कोई मरने वाले का क्या करे कोई...
मोहब्बत में आराम सब चाहते हैं मगर हज़रत-ए-'दाग़' कब चाहते हैं ख़ता क्या है उन की जो उस बुत को चाहा ख़ुदा चाहता है तो सब चाहते हैं...
साज़ ये कीना-साज़ क्या जानें नाज़ वाले नियाज़ क्या जानें शम्अ-रू आप गो हुए लेकिन लुत्फ़-ए-सोज़-ओ-गुदाज़ क्या जानें...
दिल-ए-नाकाम के हैं काम ख़राब कर लिया आशिक़ी में नाम ख़राब इस ख़राबात का यही है मज़ा कि रहे आदमी मुदाम ख़राब...
ना-रवा कहिए ना-सज़ा कहिए कहिए कहिए मुझे बुरा कहिए तुझ को बद-अहद ओ बेवफ़ा कहिए ऐसे झूटे को और क्या कहिए...
भला हो पीर-ए-मुग़ाँ का इधर निगाह मिले फ़क़ीर हैं कोई चुल्लू ख़ुदा की राह मिले कहाँ थे रात को हम से ज़रा निगाह मिले तलाश में हो कि झूटा कोई गवाह मिले...
जल्वे मिरी निगाह में कौन-ओ-मकाँ के हैं मुझ से कहाँ छुपेंगे वो ऐसे कहाँ के हैं खुलते नहीं हैं राज़ जो सोज़-ए-निहाँ के हैं क्या फूटने के वास्ते छाले ज़बाँ के हैं...
उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताते भी नहीं मुंतज़िर हैं दम-ए-रुख़्सत कि ये मर जाए तो जाएँ फिर ये एहसान कि हम छोड़ के जाते भी नहीं...
ज़ाहिद न कह बुरी कि ये मस्ताने आदमी हैं तुझ को लिपट पड़ेंगे दीवाने आदमी हैं ग़ैरों की दोस्ती पर क्यूँ ए'तिबार कीजे ये दुश्मनी करेंगे बेगाने आदमी हैं...
दिल ही तो है न आए क्यूँ दम ही तो है न जाए क्यूँ हम को ख़ुदा जो सब्र दे तुझ सा हसीं बनाए क्यूँ...
हुआ जब सामना उस ख़ूब-रू से उड़ा है रंग गुल का पहले बू से ये आँखें तर जो रहती हैं लहू से वो गुज़रे इश्क़ के दिन आबरू से...
उस से क्या ख़ाक हम-नशीं बनती बात बिगड़ी हुई नहीं बनती वो बनी इब्तिदा-ए-उल्फ़त में दम पे जो वक़्त-ए-वापसीं बनती...
बुतान-ए-माहवश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं कि जिस की जान जाती है उसी के दिल में रहते हैं हज़ारों दाग़ पिन्हाँ आशिक़ों के दिल में रहते हैं शरर पत्थर की सूरत उन की आब-ओ-गिल में रहते हैं...