मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है...
बने हैं जब से वो लैला नई महमिल में रहते हैं जिसे दीवाना करते हैं उसी के दिल में रहते हैं...
शब-ए-वस्ल ज़िद में बसर हो गई नहीं होते होते सहर हो गई निगह ग़ैर पर बे-असर हो गई तुम्हारी नज़र को नज़र हो गई...
ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम दिल ख़ून में नहाए तो गंगा नहाएँ हम जन्नत में जाएँ हम कि जहन्नम में जाएँ हम मिल जाए तो कहीं न कहीं तुझ को पाएँ हम...
फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं जहाँ बजते हैं नक़्क़ारे वहीं मातम भी होते हैं गिले शिकवे कहाँ तक होंगे आधी रात तो गुज़री परेशाँ तुम भी होते हो परेशाँ हम भी होते हैं...
आप का ए'तिबार कौन करे रोज़ का इंतिज़ार कौन करे ज़िक्र-ए-मेहर-ओ-वफ़ा तो हम करते पर तुम्हें शर्मसार कौन करे...
भरे हैं तुझ में वो लाखों हुनर ऐ मजमअ-ए-ख़ूबी मुलाक़ाती तिरा गोया भरी महफ़िल से मिलता है...
भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं किसी से आज बिगड़ी है कि वो यूँ बन के बैठे हैं...
हाथ निकले अपने दोनों काम के दिल को थामा उन का दामन थाम के घूँट पी कर बादा-ए-गुलफ़ाम के बोसे ले लेता हूँ ख़ाली जाम के...
शब-ए-वस्ल भी लब पे आए गए हैं ये नाले बहुत मुँह लगाए गए हैं ख़ुदा जाने हम किस के पहलू में होंगे अदम को सब अपने पराए गए हैं...
तेरी सूरत को देखता हूँ मैं उस की क़ुदरत को देखता हूँ मैं जब हुई सुब्ह आ गए नासेह उन्हीं हज़रत को देखता हूँ मैं...
हुआ है चार सज्दों पर ये दावा ज़ाहिदो तुम को ख़ुदा ने क्या तुम्हारे हाथ जन्नत बेच डाली है...
निगाह-ए-शोख़ जब उस से लड़ी है तो बिजली थरथरा कर गिर पड़ी है उसे भी मुझ को भी ज़िद आ पड़ी है ख़राबी बीच वालों की बड़ी है...
डरते हैं चश्म ओ ज़ुल्फ़ ओ निगाह ओ अदा से हम हर दम पनाह माँगते हैं हर बला से हम माशूक़ जा-ए-हूर मिले मय बजाए आब महशर में दो सवाल करेंगे ख़ुदा से हम...
अभी हमारी मोहब्बत किसी को क्या मालूम किसी के दिल की हक़ीक़त किसी को क्या मालूम यक़ीं तो ये है वो ख़त का जवाब लिक्खेंगे मगर नविश्ता-ए-क़िस्मत किसी को क्या मालूम...