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तुम आईना ही न हर बार देखते जाओ मिरी तरफ़ भी तो सरकार देखते जाओ न जाओ हाल-ए-दिल-ए-ज़ार देखते जाओ कि जी न चाहे तो नाचार देखते जाओ...

ग़म्ज़ा भी हो सफ़्फ़ाक निगाहें भी हों ख़ूँ-रेज़ तलवार के बाँधे से तो क़ातिल नहीं होता...

आप पछताएँ नहीं जौर से तौबा न करें आप के सर की क़सम 'दाग़' का हाल अच्छा है...

देख कर जौबन तिरा किस किस को हैरानी हुई इस जवानी पर जवानी आप दीवानी हुई पर्दे पर्दे में मोहब्बत दुश्मन-ए-जानी हुई ये ख़ुदा की मार क्या ऐ शौक़-ए-पिन्हानी हुई...

वो ज़माना नज़र नहीं आता कुछ ठिकाना नज़र नहीं आता जान जाती दिखाई देती है उन का आना नज़र नहीं आता...

बात मेरी कभी सुनी ही नहीं जानते वो बुरी भली ही नहीं दिल-लगी उन की दिल-लगी ही नहीं रंज भी है फ़क़त हँसी ही नहीं...

दिल परेशान हुआ जाता है और सामान हुआ जाता है ख़िदमत-ए-पीर-ए-मुग़ाँ कर ज़ाहिद तू अब इंसान हुआ जाता है...

ग़ैर को मुँह लगा के देख लिया झूट सच आज़मा के देख लिया उन के घर 'दाग़' जा के देख लिया दिल के कहने में आ के देख लिया...

शब-ए-वस्ल ज़िद में बसर हो गई नहीं होते होते सहर हो गई...

उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से कभी गोया किसी में थी ही नहीं...

फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं जहाँ बजते हैं नक़्क़ारे वहाँ मातम भी होता है...

मज़े इश्क़ के कुछ वही जानते हैं कि जो मौत को ज़िंदगी जानते हैं शब-ए-वस्ल लीं उन की इतनी बलाएँ कि हमदम मिरे हाथ ही जानते हैं...

इस क़दर नाज़ है क्यूँ आप को यकताई का दूसरा नाम है वो भी मिरी तन्हाई का क्या छुपे राज़ इलाही दिल-ए-शैदाई का अर्सा-ए-हश्र तो बाज़ार है रुस्वाई का...

मुमकिन नहीं कि तेरी मोहब्बत की बू न हो काफ़िर अगर हज़ार बरस दिल में तू न हो क्या लुत्फ़-ए-इंतिज़ार जो तू हीला-जू न हो किस काम का विसाल अगर आरज़ू न हो...

कौन सा ताइर-ए-गुम-गश्ता उसे याद आया देखता भालता हर शाख़ को सय्याद आया मेरे क़ाबू में न पहरों दिल-ए-नाशाद आया वो मिरा भूलने वाला जो मुझे याद आया...

हज़ार बार जो माँगा करो तो क्या हासिल दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है...

'मीर' का रंग बरतना नहीं आसाँ ऐ 'दाग़' अपने दीवाँ से मिला देखिए दीवाँ उन का...

लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है रंज भी ऐसे उठाए हैं कि जी जानता है जो ज़माने के सितम हैं वो ज़माना जाने तू ने दिल इतने सताए ही कि जी जानता है...

तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं तुझे हर बहाने से हम देखते हैं हमारी तरफ़ अब वो कम देखते हैं वो नज़रें नहीं जिन को हम देखते हैं...

उज़्र उन की ज़बान से निकला तीर गोया कमान से निकला वो छलावा इस आन से निकला अल-अमाँ हर ज़बान से निकला...

बाक़ी जहाँ में क़ैस न फ़रहाद रह गया अफ़्साना आशिक़ों का फ़क़त याद रह गया ये सख़्त-जाँ तो क़त्ल से नाशाद रह गया ख़ंजर चला तो बाज़ू-ए-जल्लाद रह गया...

साक़िया तिश्नगी की ताब नहीं ज़हर दे दे अगर शराब नहीं...

मेरे क़ाबू में न पहरों दिल-ए-नाशाद आया वो मिरा भूलने वाला जो मुझे याद आया...

देखना हश्र में जब तुम पे मचल जाऊँगा मैं भी क्या वादा तुम्हारा हूँ कि टल जाऊँगा...

तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था वो क़त्ल कर के मुझे हर किसी से पूछते हैं ये काम किस ने किया है ये काम किस का था...

ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया झूटी क़सम से आप का ईमान तो गया दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं उल्टी शिकायतें हुईं एहसान तो गया...

सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना तुम्हें क़सम है हमारे सर की हमारे हक़ में कमी न करना हमारी मय्यत पे तुम जो आना तो चार आँसू बहा के जाना ज़रा रहे पास-ए-आबरू भी कहीं हमारी हँसी न करना...

तुम अगर अपनी गूँ के हो माशूक़ अपने मतलब के यार हम भी हैं...

इधर देख लेना उधर देख लेना कन-अँखियों से उस को मगर देख लेना फ़क़त नब्ज़ से हाल ज़ाहिर न होगा मिरा दिल भी ऐ चारागर देख लेना...

भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं किसी से आज बिगड़ी है कि वो यूँ बन के बैठे हैं दिलों पर सैकड़ों सिक्के तिरे जौबन के बैठे हैं कलेजों पर हज़ारों तीर उस चितवन के बैठे हैं...

कहने देती नहीं कुछ मुँह से मोहब्बत मेरी लब पे रह जाती है आ आ के शिकायत मेरी...

सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं...

कोई नाम-ओ-निशाँ पूछे तो ऐ क़ासिद बता देना तख़ल्लुस 'दाग़' है वो आशिक़ों के दिल में रहते हैं...

अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का याद आता है हमें हाए ज़माना दिल का तुम भी मुँह चूम लो बे-साख़्ता प्यार आ जाए मैं सुनाऊँ जो कभी दिल से फ़साना दिल का...

उधर शर्म हाइल इधर ख़ौफ़ माने न वो देखते हैं न हम देखते हैं...

मैं भी हैरान हूँ ऐ 'दाग़' कि ये बात है क्या वादा वो करते हैं आता है तबस्सुम मुझ को...

जिन को अपनी ख़बर नहीं अब तक वो मिरे दिल का राज़ क्या जानें...

तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता...

तदबीर से क़िस्मत की बुराई नहीं जाती बिगड़ी हुई तक़दीर बनाई नहीं जाती...

हज़रत-ए-दाग़ जहाँ बैठ गए बैठ गए और होंगे तिरी महफ़िल से उभरने वाले...