ग़म्ज़ा भी हो सफ़्फ़ाक निगाहें भी हों ख़ूँ-रेज़
ग़म्ज़ा भी हो सफ़्फ़ाक निगाहें भी हों ख़ूँ-रेज़ तलवार के बाँधे से तो क़ातिल नहीं होता

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