दिल परेशान हुआ जाता है
दिल परेशान हुआ जाता है और सामान हुआ जाता है ख़िदमत-ए-पीर-ए-मुग़ाँ कर ज़ाहिद तू अब इंसान हुआ जाता है मौत से पहले मुझे क़त्ल करो उस का एहसान हुआ जाता है लज़्ज़त-ए-इश्क़ इलाही मिट जाए दर्द अरमान हुआ जाता है दम ज़रा लो कि मिरा दम तुम पर अभी क़ुर्बान हुआ जाता है गिर्या क्या ज़ब्त करूँ ऐ नासेह अश्क पैमान हुआ जाता है बेवफ़ाई से भी रफ़्ता रफ़्ता वो मिरी जान हुआ जाता है अर्सा-ए-हश्र में वो आ पहुँचे साफ़ मैदान हुआ जाता है मदद ऐ हिम्मत-ए-दुश्वार-पसंद काम आसान हुआ जाता है छाई जाती है ये वहशत कैसी घर बयाबान हुआ जाता है शिकवा सुन आँख मिला कर ज़ालिम क्यूँ पशीमान हुआ जाता है आतिश-ए-शौक़ बुझी जाती है ख़ाक अरमान हुआ जाता है उज़्र जाने में न कर ऐ क़ासिद तू भी नादान हुआ जाता है मुज़्तरिब क्यूँ न हों अरमाँ दिल में क़ैद मेहमान हुआ जाता है 'दाग़' ख़ामोश न लग जाए नज़र शेर दीवान हुआ जाता है

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