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हर चंद हो मुशाहिदा-ए-हक़ की गुफ़्तुगू बनती नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर...

पहले आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी अब किसी बात पर नहीं आती...

बे-पर्दा सू-ए-वादी-ए-मजनूँ गुज़र न कर हर ज़र्रा के नक़ाब में दिल बे-क़रार है...

कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं आज 'ग़ालिब' ग़ज़ल-सरा न हुआ...

हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं मक़्दूर हो तो साथ रखूँ नौहागर को मैं छोड़ा न रश्क ने कि तिरे घर का नाम लूँ हर इक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं...

क्यूँ न फ़िरदौस में दोज़ख़ को मिला लें यारब सैर के वास्ते थोड़ी सी जगह और सही...

आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है नक़्श-ए-पा जो कान में रखता है उँगली जादा से बज़्म-ए-मय वहशत-कदा है किस की चश्म-ए-मस्त का शीशे में नब्ज़-ए-परी पिन्हाँ है मौज-ए-बादा से...

ब-नाला हासिल-ए-दिल-बस्तगी फ़राहम कर मता-ए-ख़ाना-ए-ज़ंजीर जुज़ सदा मालूम ब-क़द्र-ए-हौसला-ए-इश्क़ जल्वा-रेज़ी है वगर्ना ख़ाना-ए-आईना की फ़ज़ा मालूम...

कोई वीरानी सी वीरानी है दश्त को देख के घर याद आया...

ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है निगाह दिल से तिरे सुर्मा-सा निकलती है फ़शार-ए-तंगी-ए-ख़ल्वत से बनती है शबनम सबा जो ग़ुंचे के पर्दे में जा निकलती है...

इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई मेरे दुख की दवा करे कोई शरअ' ओ आईन पर मदार सही ऐसे क़ातिल का क्या करे कोई...

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना...

हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार या इलाही ये माजरा क्या है...

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है...

कोई उम्मीद बर नहीं आती कोई सूरत नज़र नहीं आती...

तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं हम भी मज़मूँ की हवा बाँधते हैं आह का किस ने असर देखा है हम भी एक अपनी हवा बाँधते हैं...

मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था दिल भी या-रब कई दिए होते...

बू-ए-गुल नाला-ए-दिल दूद-ए-चराग़-ए-महफ़िल जो तिरी बज़्म से निकला सो परेशाँ निकला...

नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं है तक़ाज़ा-ए-जफ़ा शिकवा-ए-बेदाद नहीं इश्क़-ओ-मज़दूरी-ए-इशरत-गह-ए-ख़ुसरव क्या ख़ूब हम को तस्लीम निको-नामी-ए-फ़रहाद नहीं...

जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी गरेबाँ-चाक का हक़ हो गया है मेरी गर्दन पर बा-रंग-ए-कागज़-ए-आतिश-ज़दा नैरंग-ए-बेताबी हज़ार आईना दिल बाँधे है बाल-ए-यक-तपीदन पर...

हुज़ूर-ए-शाह में अहल-ए-सुख़न की आज़माइश है चमन में ख़ुश-नवायान-ए-चमन की आज़माइश है क़द ओ गेसू में क़ैस ओ कोहकन की आज़माइश है जहाँ हम हैं वहाँ दार-ओ-रसन की आज़माइश है...

जान तुम पर निसार करता हूँ मैं नहीं जानता दुआ क्या है...

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक...

कम नहीं जल्वागरी में, तिरे कूचे से बहिश्त यही नक़्शा है वले इस क़दर आबाद नहीं...

देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़ इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है...

अर्ज़-ए-नाज़-ए-शोख़ी-ए-दंदाँ बराए-ख़ंदा है दावा-ए-जमियत-ए-अहबाब जा-ए-ख़ंदा है है अदम में ग़ुंचा महव-ए-इबरत-ए-अंजाम-ए-गुल यक-जहाँ ज़ानू तअम्मुल दर-क़फ़ा-ए-ख़ंदा है...

साए की तरह साथ फिरें सर्व ओ सनोबर तू इस क़द-ए-दिलकश से जो गुलज़ार में आवे...

बार-हा देखी हैं उन की रंजिशें पर कुछ अब के सरगिरानी और है...

'ग़ालिब' छुटी शराब पर अब भी कभी कभी पीता हूँ रोज़-ए-अब्र ओ शब-ए-माहताब में...

सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर तग़य्युर आब-ए-बर-जा-मांदा का पाता है रंग आख़िर न की सामान-ए-ऐश-ओ-जाह ने तदबीर वहशत की हुआ जाम-ए-ज़मुर्रद भी मुझे दाग़-ए-पलंग आख़िर...

बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश मजबूर याँ तलक हुए ऐ इख़्तियार हैफ़ जलता है दिल कि क्यूँ न हम इक बार जल गए ऐ ना-तमामी-ए-नफ़स-ए-शोला-बार हैफ़...

मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ गर मैं ने की थी तौबा साक़ी को क्या हुआ था...

कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता...

रौ में है रख़्श-ए-उम्र कहाँ देखिए थमे ने हाथ बाग पर है न पा है रिकाब में...

लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और तन्हा गए क्यूँ अब रहो तन्हा कोई दिन और मिट जाएगा सर गर तिरा पत्थर न घिसेगा हूँ दर पे तिरे नासिया-फ़रसा कोई दिन और...

है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और करते हैं मोहब्बत तो गुज़रता है गुमाँ और या-रब वो न समझे हैं न समझेंगे मिरी बात दे और दिल उन को जो न दे मुझ को ज़बाँ और...

धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव रखता है ज़िद से खींच के बाहर लगन के पाँव दी सादगी से जान पड़ूँ कोहकन के पाँव हैहात क्यूँ न टूट गए पीर-ज़न के पाँव...

गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग यानी बग़ैर-ए-यक-दिल-ए-बे-मुद्दआ न माँग आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद मुझ से मिरे गुनह का हिसाब ऐ ख़ुदा न माँग...

शबनम ब-गुल-ए-लाला न ख़ाली ज़-अदा है दाग़-ए-दिल-ए-बेदर्द नज़र-गाह-ए-हया है दिल ख़ूँ-शुदा-ए-कशमकश-ए-हसरत-ए-दीदार आईना ब-दस्त-ए-बुत-ए-बद-मस्त हिना है...

कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़ पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले...