बाहर गुज़ार दी कभी अंदर भी आएँगे हम से ये पूछना कभी हम घर भी आएँगे ख़ुद आहनी नहीं हो तो पोशिश हो आहनी यूँ शीशा ही रहोगे तो पत्थर भी आएँगे...
हू का आलम है यहाँ नाला-गरों के होते शहर ख़ामोश है शोरीदा-सरों के होते क्यूँ शिकस्ता है तिरा रंग मता-ए-सद-रंग और फिर अपने ही ख़ूनीं-जिगरों के होते...
शौक़ का रंग बुझ गया याद के ज़ख़्म भर गए क्या मिरी फ़स्ल हो चुकी क्या मिरे दिन गुज़र गए रह-गुज़र-ए-ख़याल में दोश-ब-दोश थे जो लोग वक़्त की गर्द-बाद में जाने कहाँ बिखर गए...
जुज़ गुमाँ और था ही क्या मेरा फ़क़त इक मेरा नाम था मेरा निकहत-ए-पैरहन से उस गुल की सिलसिला बे-सबा रहा मेरा...
क्या हो गया है गेसू-ए-ख़मदार को तिरे आज़ाद कर रहे हैं गिरफ़्तार को तिरे अब तू है मुद्दतों से शब-ओ-रोज़ रू-ब-रू कितने ही दिन गुज़र गए दीदार को तिरे...
आज बहुत दिन ब'अद मैं अपने कमरे तक आ निकला था जूँ ही दरवाज़ा खोला है उस की ख़ुश्बू आई है...
दिल का दयार-ए-ख़्वाब में दूर तलक गुज़र रहा पाँव नहीं थे दरमियाँ आज बड़ा सफ़र रहा हो न सका हमें कभी अपना ख़याल तक नसीब नक़्श किसी ख़याल का लौह-ए-ख़याल पर रहा...
गाहे गाहे बस अब यही हो क्या तुम से मिल कर बहुत ख़ुशी हो क्या मिल रही हो बड़े तपाक के साथ मुझ को यकसर भुला चुकी हो क्या...
हर धड़कन हैजानी थी हर ख़ामोशी तूफ़ानी थी फिर भी मोहब्बत सिर्फ़ मुसलसल मिलने की आसानी थी जिस दिन उस से बात हुई थी उस दिन भी बे-कैफ़ था मैं जिस दिन उस का ख़त आया है उस दिन भी वीरानी थी...
सोचा है कि अब कार-ए-मसीहा न करेंगे वो ख़ून भी थूकेगा तो परवा न करेंगे इस बार वो तल्ख़ी है कि रूठे भी नहीं हम अब के वो लड़ाई है कि झगड़ा न करेंगे...
ईज़ा-दही की दाद जो पाता रहा हूँ मैं हर नाज़-आफ़रीं को सताता रहा हूँ मैं ऐ ख़ुश-ख़िराम पाँव के छाले तो गिन ज़रा तुझ को कहाँ कहाँ न फिराता रहा हूँ मैं...
दिल-ए-बर्बाद को आबाद किया है मैं ने आज मुद्दत में तुम्हें याद किया है मैं ने ज़ौक़-ए-परवाज़-ए-तब-ओ-ताब अता फ़रमा कर सैद को लाइक़-ए-सय्याद किया है मैं ने...
नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम...
सिलसिला जुम्बाँ इक तन्हा से रूह किसी तन्हा की थी एक आवाज़ अभी आई थी वो आवाज़ हवा की थी बे-दुनियाई ने इस दिल की और भी दुनिया-दार किया दिल पर ऐसी टूटी दुनिया तर्क ज़रा दुनिया की थी...
कोई दम भी मैं कब अंदर रहा हूँ लिए हैं साँस और बाहर रहा हूँ धुएँ में साँस हैं साँसों में पल हैं मैं रौशन-दान तक बस मर रहा हूँ...
हर बार मेरे सामने आती रही हो तुम हर बार तुम से मिल के बिछड़ता रहा हूँ मैं तुम कौन हो ये ख़ुद भी नहीं जानती हो तुम मैं कौन हूँ ये ख़ुद भी नहीं जानता हूँ मैं...
चलो बाद-ए-बहारी जा रही है पिया-जी की सवारी जा रही है शुमाल-ए-जावेदान-ए-सब्ज़-ए-जाँ से तमन्ना की अमारी जा रही है...
आख़िरी बार आह कर ली है मैं ने ख़ुद से निबाह कर ली है अपने सर इक बला तो लेनी थी मैं ने वो ज़ुल्फ़ अपने सर ली है...
बंद बाहर से मिरी ज़ात का दर है मुझ में मैं नहीं ख़ुद में ये इक आम ख़बर है मुझ में इक अजब आमद-ओ-शुद है कि न माज़ी है न हाल 'जौन' बरपा कई नस्लों का सफ़र है मुझ में...