तुझ में पड़ा हुआ हूँ हरकत नहीं है मुझ में हालत न पूछियो तू हालत नहीं है मुझ में अब तो नज़र में आ जा बाँहों के घर में आ जा ऐ जान तेरी कोई सूरत नहीं है मुझ में...
इक ज़ख़्म भी यारान-ए-बिस्मिल नहीं आने का मक़्तल में पड़े रहिए क़ातिल नहीं आने का अब कूच करो यारो सहरा से कि सुनते हैं सहरा में अब आइंदा महमिल नहीं आने का...
है बिखरने को ये महफ़िल-ए-रंग-ओ-बू तुम कहाँ जाओगे हम कहाँ जाएँगे हर तरफ़ हो रही है यही गुफ़्तुगू तुम कहाँ जाओगे हम कहाँ जाएँगे हर मता-ए-नफ़स नज़्र-ए-आहंग की हम को याराँ हवस थी बहुत रंग की गुल-ज़मीं से उबलने को है अब लहू तुम कहाँ जाओगे हम कहाँ जाएँगे...
हमारे ज़ख़्म-ए-तमन्ना पुराने हो गए हैं कि उस गली में गए अब ज़माने हो गए हैं तुम अपने चाहने वालों की बात मत सुनियो तुम्हारे चाहने वाले दिवाने हो गए हैं...
लाज़िम है अपने आप की इमदाद कुछ करूँ सीने में वो ख़ला है कि ईजाद कुछ करूँ हर लम्हा अपने आप में पाता हूँ कुछ कमी हर लम्हा अपने आप में ईज़ाद कुछ करूँ...
किस से इज़हार-ए-मुद्दआ कीजे आप मिलते नहीं हैं क्या कीजे हो न पाया ये फ़ैसला अब तक आप कीजे तो क्या किया कीजिए...
मुझे तुम अपनी बाँहों में जकड़ लो और मैं तुम को किसी भी दिल-कुशा जज़्बे से यकसर ना-शनासाना नशात-ए-रंग की सरशारी-ए-हालत से बेगाना मुझे तुम अपनी बाँहों में जकड़ लो और मैं तुम को...
गाहे गाहे बस अब यही हो गया तुम से मिल कर बहुत ख़ुशी हो क्या मिल रही हो बड़े तपाक के साथ मुझ को यकसर भुला चुकी हो क्या...
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे...
लम्हे लम्हे की ना-रसाई है ज़िंदगी हालत-ए-जुदाई है मर्द-ए-मैदाँ हूँ अपनी ज़ात का मैं मैं ने सब से शिकस्त खाई है...
सुना है तुम ने अपने आख़िरी लम्हों में समझा था कि तुम मेरी हिफ़ाज़त में हो मेरे बाज़ुओं में हो सुना है बुझते बुझते भी तुम्हारे सर्द ओ मुर्दा लब से एक शो'ला शोला-ए-याक़ूत-फ़ाम ओ रंग ओ उम्मीद-ए-फ़रोग़-ए-ज़िंदगी-आहंग लपका था...
जो गुज़र दुश्मन है उस का रहगुज़र रक्खा है नाम ज़ात से अपनी न हिलने का सफ़र रक्खा है नाम पड़ गया है इक भँवर उस को समझ बैठे हैं घर लहर उठी है लहर का दीवार-ओ-दर रक्खा है नाम...
ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं शुक्रिया मश्वरत का चलते हैं हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद देखने वाले हाथ मलते हैं...
मुझे ग़रज़ है मिरी जान ग़ुल मचाने से न तेरे आने से मतलब न तेरे जाने से अजीब है मिरी फ़ितरत कि आज ही मसलन मुझे सुकून मिला है तिरे न आने से...