हम तो जैसे वहाँ के थे ही नहीं बे-अमाँ थे अमाँ के थे ही नहीं हम कि हैं तेरी दास्ताँ यकसर हम तिरी दास्ताँ के थे ही नहीं...
शाम हुई है यार आए हैं यारों के हमराह चलें आज वहाँ क़व्वाली होगी 'जौन' चलो दरगाह चलें अपनी गलियाँ अपने रमने अपने जंगल अपनी हवा चलते चलते वज्द में आएँ राहों में बे-राह चलें...
सर ही अब फोड़िए निदामत में नींद आने लगी है फ़ुर्क़त में हैं दलीलें तिरे ख़िलाफ़ मगर सोचता हूँ तिरी हिमायत में...
बहुत दिल को कुशादा कर लिया क्या ज़माने भर से वा'दा कर लिया क्या तो क्या सच-मुच जुदाई मुझ से कर ली तो ख़ुद अपने को आधा कर लिया क्या...
क्या कहें तुम से बूद-ओ-बाश अपनी काम ही क्या वही तलाश अपनी कोई दम ऐसी ज़िंदगी भी करें अपना सीना हो और ख़राश अपनी...
आज लब-ए-गुहर-फ़िशाँ आप ने वा नहीं किया तज़्किरा-ए-ख़जिस्ता-ए-आब-ओ-हवा नहीं किया कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोई तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया...
ये किताबों की सफ़-ब-सफ़ जिल्दें काग़ज़ों का फ़ुज़ूल इस्ती'माल रौशनाई का शानदार इसराफ़ सीधे सीधे से कुछ सियह धब्बे...
हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई शौक़ में कुछ नहीं गया शौक़ की ज़िंदगी गई तेरा फ़िराक़ जान-ए-जाँ ऐश था क्या मिरे लिए यानी तिरे फ़िराक़ में ख़ूब शराब पी गई...
है फ़सीलें उठा रहा मुझ में जाने ये कौन आ रहा मुझ में 'जौन' मुझ को जिला-वतन कर के वो मिरे बिन भला रहा मुझ में...
बे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे सिर्फ़ ज़िंदा रहे हम तो मर जाएँगे रक़्स है रंग पर रंग हम-रक़्स हैं सब बिछड़ जाएँगे सब बिखर जाएँगे...
दिल की हर बात ध्यान में गुज़री सारी हस्ती गुमान में गुज़री अज़्ल-ए-दास्ताँ से इस दम तक जो भी गुज़री इक आन में गुज़री...
ऐ कू-ए-यार तेरे ज़माने गुज़र गए जो अपने घर से आए थे वो अपने घर गए अब कौन ज़ख़्म ओ ज़हर से रक्खेगा सिलसिला जीने की अब हवस है हमें हम तो मर गए...
ज़ब्त कर के हँसी को भूल गया मैं तो उस ज़ख़्म ही को भूल गया ज़ात दर ज़ात हम-सफ़र रह कर अजनबी अजनबी को भूल गया...
घर से हम घर तलक गए होंगे अपने ही आप तक गए होंगे हम जो अब आदमी हैं पहले कभी जाम होंगे छलक गए होंगे...
मैं शायद तुम को यकसर भूलने वाला हूँ शायद जान-ए-जाँ शायद कि अब तुम मुझ को पहले से ज़ियादा याद आती हो है दिल ग़मगीं बहुत ग़मगीं...
सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई क्यूँ चीख़ चीख़ कर न गला छील ले कोई साबित हुआ सुकून-ए-दिल-ओ-जाँ कहीं नहीं रिश्तों में ढूँढता है तो ढूँडा करे कोई...