तूने ये हरसिंगार हिलाकर बुरा किया पांवों की सब जमीन को फूलों से ढंक लिया किससे कहें कि छत की मुंडेरों से गिर पड़े हमने ही ख़ुद पतंग उड़ाई थी शौकिया...
अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार आप बच कर चल सकें ऐसी कोई सूरत नहीं रहगुज़र घेरे हुए मुर्दे खड़े हैं बेशुमार ...
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं मैं बेपनाह अँधेरों को सुब्ह कैसे कहूँ मैं इन नज़ारों का अँधा तमाशबीन नहीं ...
बाएँ से उड़के दाईं दिशा को गरुड़ गया कैसा शगुन हुआ है कि बरगद उखड़ गया इन खँडहरों में होंगी तेरी सिसकियाँ ज़रूर इन खँडहरों की ओर सफ़र आप मुड़ गया...
तुमको निहारता हूँ सुबह से ऋतम्बरा अब शाम हो रही है मगर मन नहीं भरा ख़रगोश बन के दौड़ रहे हैं तमाम ख़्वाब फिरता है चाँदनी में कोई सच डरा—डरा ...
हालाते जिस्म, सूरती—जाँ और भी ख़राब चारों तरफ़ ख़राब यहाँ और भी ख़राब नज़रों में आ रहे हैं नज़ारे बहुत बुरे होंठों पे आ रही है ज़ुबाँ और भी ख़राब...
ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारो दर्दे—दिल वक़्त पे पैग़ाम भी पहुँचाएगा इस क़बूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो...
किसी को क्या पता था इस अदा पर मर मिटेंगे हम किसी का हाथ उठ्ठा और अलकों तक चला आया वो बरगश्ता थे कुछ हमसे उन्हें क्योंकर यक़ीं आता चलो अच्छा हुआ एहसास पलकों तक चला आया...
पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं...
एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है...
अफ़वाह है या सच है ये कोई नही बोला मैंने भी सुना है अब जाएगा तेरा डोला इन राहों के पत्थर भी मानूस थे पाँवों से पर मैंने पुकारा तो कोई भी नहीं बोला...
ये सच है कि पाँवों ने बहुत कष्ट उठाए पर पाँवों किसी तरह से राहों पे तो आए हाथों में अंगारों को लिए सोच रहा था कोई मुझे अंगारों की तासीर बताए...
सँभल सँभल के’ बहुत पाँव धर रहा हूँ मैं पहाड़ी ढाल से जैसे उतर रहा हूँ मैं क़दम क़दम पे मुझे टोकता है दिल ऐसे गुनाह कोई बड़ा जैसे कर रहा हूँ मैं।...
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ एक जंगल है तेरी आँखों में मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ ...