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तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल इतना आसान तिरे इश्क़ का ग़म था ही नहीं...
तू याद आया तिरे जौर-ओ-सितम लेकिन न याद आए मोहब्बत में ये मासूमी बड़ी मुश्किल से आती है...
तबीअत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं...