यहाँ एक बच्चे के ख़ून से जो लिखा हुआ है उसे पढ़ें तिरा कीर्तन अभी पाप है अभी मेरा सज्दा हराम है...
मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो...
आहन में ढलती जाएगी इक्कीसवीं सदी फिर भी ग़ज़ल सुनाएगी इक्कीसवीं सदी बग़दाद दिल्ली मास्को लंदन के दरमियाँ बारूद भी बिछाएगी इक्कीसवीं सदी...
अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया जिस को गले लगा लिया वो दूर हो गया काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के दीवाना बे-पढ़े-लिखे मशहूर हो गया...
अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है...
हम ने तो बाज़ार में दुनिया बेची और ख़रीदी है हम को क्या मालूम किसी को कैसे चाहा जाता है...
न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर कई साल ब'अद मिले हैं हम तेरे नाम आज की शाम है...
वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मिरी दुआ में असर न हो...
मिरी ज़िंदगी भी मिरी नहीं ये हज़ार ख़ानों में बट गई मुझे एक मुट्ठी ज़मीन दे ये ज़मीन कितनी सिमट गई तिरी याद आए तो चुप रहूँ ज़रा चुप रहूँ तो ग़ज़ल कहूँ ये अजीब आग की बेल थी मिरे तन-बदन से लिपट गई...