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शोख़ कहता है बे-हया जाना देखो दुश्मन ने तुम को क्या जाना शोला-ए-दिल को नाज़-ए-ताबिश है अपना जल्वा ज़रा दिखा जाना...

ऐ आरज़ू-ए-क़त्ल ज़रा दिल को थामना मुश्किल पड़ा मिरा मिरे क़ातिल को थामना तासीर-ए-बे-क़रारी-ए-नाकाम आफ़रीं है काम उन से शोख़-ए-शमाइल को थामना...

हम समझते हैं आज़माने को उज़्र कुछ चाहिए सताने को...

सब्र वहशत-असर न हो जाए कहीं सहरा भी घर न हो जाए रश्क-ए-पैग़ाम है इनाँ-कश-ए-दिल नामा-बर राहबर न हो जाए...

है दिल में ग़ुबार उस के घर अपना न करेंगे हम ख़ाक में मिलने की तमन्ना न करेंगे क्यूँकर ये कहें मिन्नत-ए-आदा न करेंगे क्या क्या न किया इश्क़ में क्या क्या न करेंगे...

दीदा-ए-हैराँ ने तमाशा किया देर तलक वो मुझे देखा किया ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ गो कि असर था किया हौसला क्या क्या न किया क्या किया...

तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब कहीं साया मिरा पड़ा साहब है ये बंदा ही बेवफ़ा साहब ग़ैर और तुम भले भला साहब...

हुई तासीर आह-ओ-ज़ारी की रह गई बात बे-क़रारी की शिकवा-ए-दुश्मनी करें किस से वाँ शिकायत है दोस्त-दारी की...

शब जो मस्जिद में जा फँसे 'मोमिन' रात काटी ख़ुदा ख़ुदा कर के...

इम्तिहाँ के लिए जफ़ा कब तक इल्तिफ़ात-ए-सितम-नुमा कब तक ग़ैर है बेवफ़ा पे तुम तो कहो है इरादा निबाह का कब तक...

गो आप ने जवाब बुरा ही दिया वले मुझ से बयाँ न कीजे अदू के पयाम को...

क्या जाने क्या लिखा था उसे इज़्तिराब में क़ासिद की लाश आई है ख़त के जवाब में...

हम समझते हैं आज़माने को उज़्र कुछ चाहिए सताने को संग-ए-दर से तिरे निकाली आग हम ने दुश्मन का घर जलाने को...

थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब वाँ तअ'ना तीर-ए-यार यहाँ शिकवा ज़ख़्म-रेज़ बाहम थी किस मज़े की लड़ाई तमाम शब...

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो...

तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर ले हम तो कल ख़्वाब-ए-अदम में शब-ए-हिज्राँ होंगे...

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो वही यानी वअदा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे पेश-तर वो करम कि था मिरे हाल पर मुझे सब है याद ज़रा ज़रा तुम्हें याद हो कि न याद हो...

तुम हमारे किसी तरह न हुए वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता...