फिर शब-ए-ग़म ने मुझे शक्ल दिखाई क्यूँकर ये बला घर से निकाली हुई आई क्यूँकर कट सके सख़्ती-ए-अय्याम-ए-जुदाई क्यूँकर ग़ैर को आए इलाही मिरी आई क्यूँकर...
क़रीने से अजब आरास्ता क़ातिल की महफ़िल है जहाँ सर चाहिए सर है जहाँ दिल चाहिए दिल है हर इक के वास्ते कब इश्क़ की दुश्वार मंज़िल है जिसे आसाँ है आसाँ है जिसे मुश्किल है मुश्किल है...
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता कोई फ़ित्ना ता-क़यामत न फिर आश्कार होता तिरे दिल पे काश ज़ालिम मुझे इख़्तियार होता...
इस नहीं का कोई इलाज नहीं रोज़ कहते हैं आप आज नहीं कल जो था आज वो मिज़ाज नहीं इस तलव्वुन का कुछ इलाज नहीं...
फिरे राह से वो यहाँ आते आते अजल मर रही तू कहाँ आते आते न जाना कि दुनिया से जाता है कोई बहुत देर की मेहरबाँ आते आते...
ये गुस्ताख़ी ये छेड़ अच्छी नहीं है ऐ दिल-ए-नादाँ अभी फिर रूठ जाएँगे अभी तो मन के बैठे हैं...
कहते हैं जिस को हूर वो इंसाँ तुम्हीं तो हो जाती है जिस पे जान मिरी जाँ तुम्हीं तो हो मतलब की कह रहे हैं वो दाना हमीं तो हैं मतलब की पूछते हो वो नादाँ तुम्हीं तो हो...