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मत छुओ इस झील को। कंकड़ी मारो नहीं, पत्तियाँ डारो नहीं, फूल मत बोरो। ...

नमो, नमो, नमो... नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो! नमो नगाधिराज-शृंग की विहारिणी! नमो अनंत सौख्य-शक्ति-शील-धारिणी!...

बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा बिचारें, आज क्या है कि देख कौम को गम है। कौम-कौम का शोर मचा है, किन्तु कहो असल में कौन मर्द है जिसे कौम की सच्ची लगी लगन है?...

आजादी तो मिल गई, मगर, यह गौरव कहाँ जुगाएगा ? मरभुखे ! इसे घबराहट में तू बेच न तो खा जाएगा ? आजादी रोटी नहीं, मगर, दोनों में कोई वैर नहीं, पर कहीं भूख बेताब हुई तो आजादी की खैर नहीं।...

एक काबुली वाले की कहते हैं लोग कहानी, लाल मिर्च को देख गया भर उसके मुँह में पानी। सोचा, क्या अच्छे दाने हैं, खाने से बल होगा, यह जरूर इस मौसम का कोई मीठा फल होगा।...

वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर।...

झूमें झर चरण के नीचे मैं उमंग में गाऊँ. तान, तान, फण व्याल! कि तुझ पर मैं बाँसुरी बजाऊँ। यह बाँसुरी बजी माया के मुकुलित आकुंचन में, यह बाँसुरी बजी अविनाशी के संदेह गहन में ...

वनिता की ममता न हुई, सुत का न मुझे कुछ छोह हुआ, ख्याति, सुयश, सम्मान, विभव का, त्यों ही, कभी न मोह हुआ। जीवन की क्या चहल-पहल है, इसे न मैने पहचाना, सेनापति के एक इशारे पर मिटना केवल जाना।...

माथे में सेंदूर पर छोटी दो बिंदी चमचम-सी, पपनी पर आँसू की बूँदें मोती-सी, शबनम-सी। ...

धुँधली हुईं दिशाएँ, छाने लगा कुहासा, कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँ-सा। कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है; मुँह को छिपा तिमिर में क्यों तेज रो रहा है?...

मैं झरोखा हूँ। कि जिसकी टेक लेकर विश्व की हर चीज बाहर झाँकती है। पर, नहीं मुझ पर, ...

बहुत दूर पर अट्टहास कर सागर हँसता है। दशन फेन के, ...

मैं चरणॊं से लिपट रहा था, सिर से मुझे लगाया क्यों? पूजा का साहित्य पुजारी पर इस भाँति चढ़ाया क्यों? गंधहीन बन-कुसुम-स्तुति में अलि का आज गान कैसा? मन्दिर-पथ पर बिछी धूलि की पूजा का विधान कैसा?...

यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिस्र गगन में कूक रही क्यों नियति व्यंग से इस गोधूलि-लगन में ? मरघट में तू साज रही दिल्ली कैसे श्रृंगार? यह बहार का स्वांग अरी इस उजड़े चमन में!...

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल सबका लिया सहारा पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे कहो, कहाँ, कब हारा?...

मेरे नगपति! मेरे विशाल! साकार, दिव्य, गौरव विराट्, पौरुष के पुन्जीभूत ज्वाल! मेरी जननी के हिम-किरीट!...

गीत, अगीत, कौन सुंदर है? गाकर गीत विरह की तटिनी वेगवती बहती जाती है, दिल हलका कर लेने को...

चूहे ने यह कहा कि चूहिया! छाता और घड़ी दो, लाया था जो बड़े सेठ के घर से, वह पगड़ी दो। मटर-मूँग जो कुछ घर में है, वही सभी मिल खाना, खबरदार, तुम लोग कभी बिल से बाहर मत आना!...

माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी? भय है, सुन कर हँस दोगे मेरी नादानी परदेशी! सृजन-बीच संहार छिपा, कैसे बतलाऊं परदेशी? सरल कंठ से विषम राग मैं कैसे गाऊँ परदेशी?...

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है ! उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है ।...

उड़ी एक अफवाह, सूर्य की शादी होने वाली है, वर के विमल मौर में मोती उषा पिराने वाली है। मोर करेंगे नाच, गीत कोयल सुहाग के गाएगी, लता विटप मंडप-वितान से वंदन वार सजाएगी!...

तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ मैं। मेरे प्यारे देश! देह या मन को नमन करूत्र मैं? किसको नमन करूँ मैं भारत, किसको नमन करूँ मैं? भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है,...

जेठ हो कि हो पूस, हमारे कृषकों को आराम नहीं है छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है वसन कहाँ? सूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है ...

दो में से क्या तुम्हे चाहिए कलम या कि तलवार मन में ऊँचे भाव कि तन में शक्ति विजय अपार अंध कक्ष में बैठ रचोगे ऊँचे मीठे गान या तलवार पकड़ जीतोगे बाहर का मैदान...

राजा वसन्त वर्षा ऋतुओं की रानी लेकिन दोनों की कितनी भिन्न कहानी राजा के मुख में हँसी कण्ठ में माला रानी का अन्तर द्रवित दृगों में पानी...

लेन-देन का हिसाब लंबा और पुराना है। जिनका कर्ज हमने खाया था, उनका बाकी हम चुकाने आये हैं।...

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण खोलो¸ रूक सुनो¸ विकल यह नाद कहां से आता है।...

जाग रहे हम वीर जवान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान ! हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल, हम नवीन भारत के सैनिक, धीर,वीर,गंभीर, अचल ।...

घेरे था मुझे तुम्हारी साँसों का पवन, जब मैं बालक अबोध अनजान था। यह पवन तुम्हारी साँस का सौरभ लाता था।...

हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला सन-सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता हूँ ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ।...

सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है; दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।...

मैं पर्वतारोही हूँ। शिखर अभी दूर है। और मेरी साँस फूलनें लगी है। मुड़ कर देखता हूँ...

हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है। हर ज़िन्दगी किसी न किसी ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है ।...

सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं सच् है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, सूरमा नहीं विचलित होते,...

है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार; पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार। भोग लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दाम; बह रही असहाय नर कि भावना निष्काम।...

पुरुष वीर बलवान, देश की शान, हमारे नौजवान घायल होकर आये हैं।...

वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा संभालो चट्टानों की छाती से दूध निकालो है रुकी जहाँ भी धार शिलाएं तोड़ो पीयूष चन्द्रमाओं का पकड़ निचोड़ो...

एक पढ़क्‍कू बड़े तेज थे, तर्कशास्‍त्र पढ़ते थे, जहाँ न कोई बात, वहाँ भी नए बात गढ़ते थे। एक रोज़ वे पड़े फिक्र में समझ नहीं कुछ न पाए, "बैल घुमता है कोल्‍हू में कैसे बिना चलाए?"...

ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो , किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो? किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से, भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?...

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है! उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है। ...