सफ़र नामा
पेकिंग यूँ गुमाँ होता है बाज़ू हैं मिरे साथ करोड़ और आफ़ाक़ की हद तक मिरे तन की हद है दिल मिरा कोह ओ दमन दश्त ओ चमन की हद है मेरे कीसे में है रातों का सियह-फ़ाम जलाल मेरे हाथों में है सुब्हों की एनान-ए-गुलगूँ मेरी आग़ोश में पलती है ख़ुदाई सारी मेरे मक़्दूर में है मोजिज़ा-ए-कुन-फ़यकूं सिंकियांग अब कोई तब्ल बजेगा न कोई शाह-सवार सुब्ह-दम मौत की वादी को रवाना होगा! अब कोई जंग न होगी न कभी रात गए ख़ून की आग को अश्कों से बुझाना होगा कोई दिल धड़केगा शब भर न किसी आँगन में वहम मनहूस परिंदे की तरह आएगा सहम खूँ-ख़्वार दरिंदे की तरह आएगा अब कोई जंग न होगी मय-ओ-साग़र लाओ ख़ूँ लुटाना न कभी अश्क बहाना न होगा साक़िया! रक़्स कोई रक़्स-ए-सबा की सूरत मुतरिबा! कोई ग़ज़ल रंग-ए-हिना की सूरत

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