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कोई उम्मीद बर नहीं आती कोई सूरत नज़र नहीं आती मौत का एक दिन मुअय्यन है नींद क्यूँ रात भर नहीं आती...

की उस ने गर्म सीना-ए-अहल-ए-हवस में जा आवे न क्यूँ पसंद कि ठंडा मकान है...

धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव रखता है ज़िद से खींच के बाहर लगन के पाँव...

हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता...

ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के हम रहें यूँ तिश्ना-लब पैग़ाम के ख़स्तगी का तुम से क्या शिकवा कि ये हथकण्डे हैं चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम के...

निकोहिश है सज़ा फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की मबादा ख़ंदा-ए-दंदाँ-नुमा हो सुब्ह महशर की रग-ए-लैला को ख़ाक-ए-दश्त-ए-मजनूँ रेशगी बख़्शे अगर बोवे बजा-ए-दाना दहक़ाँ नोक निश्तर की...

कहते तो हो तुम सब कि बुत-ए-ग़ालिया-मू आए यक मरतबा घबरा के कहो कोई कि वो आए हूँ कशमकश-ए-नज़ा में हाँ जज़्ब-ए-मोहब्बत कुछ कह न सकूँ पर वो मिरे पूछने को आए...

फूँका है किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा अफ़्सून-ए-इंतिज़ार तमन्ना कहें जिसे...

गुलशन को तिरी सोहबत अज़-बस-कि ख़ुश आई है हर ग़ुंचे का गुल होना आग़ोश-कुशाई है वाँ कुंगुर-ए-इस्तिग़्ना हर-दम है बुलंदी पर याँ नाले को और उल्टा दावा-ए-रसाई है...

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा कोई बताओ कि वो शोख़-ए-तुंद-ख़ू क्या है...

फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर है दाग़-ए-इश्क़ ज़ीनत-ए-जेब-ए-कफ़न हुनूज़ है नाज़-ए-मुफ़्लिसाँ ज़र-ए-अज़-दस्त-रफ़्ता पर हूँ गुल-फ़रोश-ए-शोख़ी-ए-दाग़-ए-कोहन हुनूज़...

हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और...

करे है बादा तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़ ख़त-ए-पियाला सरासर निगाह-ए-गुल-चीं है कभी तो इस दिल-ए-शोरीदा की भी दाद मिले कि एक उम्र से हसरत-परस्त-ए-बालीं है...

हद चाहिए सज़ा में उक़ूबत के वास्ते आख़िर गुनाहगार हूँ काफ़र नहीं हूँ मैं...

लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले 'ग़ालिब' ये ख़ौफ़ है कि कहाँ से अदा करूँ ख़ुश वहशते कि अर्ज़-ए-जुनून-ए-फ़ना करूँ जूँ गर्द-ए-राह जामा-ए-हस्ती क़बा करूँ...

ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है इक शम्अ है दलील-ए-सहर सो ख़मोश है ने मुज़्दा-ए-विसाल न नज़्ज़ारा-ए-जमाल मुद्दत हुई कि आश्ती-ए-चश्म-ओ-गोश है...

जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं ख़याबाँ ख़याबाँ इरम देखते हैं दिल-आशुफ़्तगाँ ख़ाल-ए-कुंज-ए-दहन के सुवैदा में सैर-ए-अदम देखते हैं...

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ...

घर हमारा जो न रोते भी तो वीराँ होता बहर गर बहर न होता तो बयाबाँ होता तंगी-ए-दिल का गिला क्या ये वो काफ़िर-दिल है कि अगर तंग न होता तो परेशाँ होता...

और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया साग़र-ए-जम से मिरा जाम-ए-सिफ़ाल अच्छा है...

की मिरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा हाए उस ज़ूद-पशीमाँ का पशीमाँ होना...

आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी अब किसी बात पर नहीं आती...

ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ बे-शाना-ए-सबा नहीं तुर्रा गयाह का बज़्म-ए-क़दह से ऐश-ए-तमन्ना न रख कि रंग सैद-ए-ज़े-दाम-ए-जस्ता है उस दाम-गाह का...

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ रोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँ नहीं बैठे हैं रहगुज़र पे हम ग़ैर हमें उठाए क्यूँ...

दिखा के जुम्बिश-ए-लब ही तमाम कर हम को न दे जो बोसा तो मुँह से कहीं जवाब तो दे...

मुझ तक कब उन की बज़्म में आता था दौर-ए-जाम साक़ी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में...

एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब ख़ून-ए-जिगर वदीअत-ए-मिज़्गान-ए-यार था...

हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद जो नहीं जानते वफ़ा क्या है...

है वस्ल हिज्र आलम-ए-तमकीन-ओ-ज़ब्त में माशूक़-ए-शोख़ ओ आशिक़-ए-दीवाना चाहिए उस लब से मिल ही जाएगा बोसा कभी तो हाँ शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओ जुरअत-ए-रिंदाना चाहिए...

आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त दूद-ए-शम-ए-कुश्ता था शायद ख़त-ए-रुख़्सार-ए-दोस्त ऐ दिल-ए-ना-आक़िबत-अंदेश ज़ब्त-ए-शौक़ कर कौन ला सकता है ताब-ए-जल्वा-ए-दीदार-ए-दोस्त...

हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं मक़्दूर हो तो साथ रखूँ नौहागर को मैं...

जान दी दी हुई उसी की थी हक़ तो यूँ है कि हक़ अदा न हुआ...

पकड़े जाते हैं फ़रिश्तों के लिखे पर ना-हक़ आदमी कोई हमारा दम-ए-तहरीर भी था...

हाँ ऐ फ़लक-ए-पीर जवाँ था अभी आरिफ़ क्या तेरा बिगड़ता जो न मरता कोई दिन और...

कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना है यूँ कि मुझे दुर्द-ए-तह-ए-जाम बहुत है...

है मुश्तमिल नुमूद-ए-सुवर पर वजूद-ए-बहर याँ क्या धरा है क़तरा ओ मौज-ओ-हबाब में...

बे-ए'तिदालियों से सुबुक सब में हम हुए जितने ज़ियादा हो गए उतने ही कम हुए पिन्हाँ था दाम सख़्त क़रीब आशियान के उड़ने न पाए थे कि गिरफ़्तार हम हुए...

नक़्श-ए-नाज़-ए-बुत-ए-तन्नाज़ ब-आग़ोश-ए-रक़ीब पा-ए-ताऊस पए-ख़ामा-ए-मानी माँगे तू वो बद-ख़ू कि तहय्युर को तमाशा जाने ग़म वो अफ़्साना कि आशुफ़्ता-बयानी माँगे...

जौर से बाज़ आए पर बाज़ आएँ क्या कहते हैं हम तुझ को मुँह दिखलाएँ क्या रात दिन गर्दिश में हैं सात आसमाँ हो रहेगा कुछ न कुछ घबराएँ क्या...

नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच अगर शराब नहीं इंतिज़ार-ए-साग़र खींच कमाल-ए-गर्मी-ए-सई-ए-तलाश-ए-दीद न पूछ ब-रंग-ए-ख़ार मिरे आइने से जौहर खींच...