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मुझ से अब लोग कम ही मिलते हैं यूँ भी मैं हट गया हूँ मंज़र से...

सब मेरे बग़ैर मुतमइन हैं मैं सब के बग़ैर जी रहा हूँ...

अपने सभी गिले बजा पर है यही कि दिलरुबा मेरा तिरा मोआ'मला इश्क़ के बस का था नहीं...

उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या दाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या मेरी हर बात बे-असर ही रही नक़्स है कुछ मिरे बयान में क्या...

हमला है चार सू दर-ओ-दीवार-ए-शहर का सब जंगलों को शहर के अंदर समेट लो...

जाने कहाँ गया है वो वो जो अभी यहाँ था वो जो अभी यहाँ था वो कौन था कहाँ था ता-लम्हा-ए-गुज़िश्ता ये जिस्म और साए ज़िंदा थे राएगाँ में जो कुछ था राएगाँ था...