Ibn-e-Insha
( 1927 - 1978 )

Ibn-e-Insha (Hindi: इब्न-ए-इंशा) born Sher Muhammad Khan, was a Pakistani Urdu poet, humorist, travelogue writer and newspaper columnist. Along with his poetry, he was regarded as one of the best humorists of Urdu. More

हम बंजारे दिल वाले हैं और पैंठ में डेरे डाले हैं तुम धोका देने वाली हो? हम धोका खाने वाले हैं ...

किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे मल्लाहो तुम परदेसी को बीच भँवर में मारोगे मुँह देखे की मीठी बातें सुनते इतनी उम्र हुई आँख से ओझल होते होते जी से हमें बिसारोगे...

कुछ दे इसे रुख़्सत कर क्यूँ आँख झुका ली है हाँ दर पे तिरे मौला! 'इंशा' भी सवाली है इस बात पे क्यूँ इस की इतना भी हिजाब आए फ़रियाद से बे-बहरा कश्कोल से ख़ाली है...

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा हम भी वहीं मौजूद थे हम से भी सब पूछा किए हम हँस दिए हम चुप रहे मंज़ूर था पर्दा तिरा...

शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती या हमीं को ख़बर नहीं होती हम ने सब दुख जहाँ के देखे हैं बेकली इस क़दर नहीं होती...

ये बातें झूटी बातें हैं ये लोगों ने फैलाई हैं तुम 'इंशा'-जी का नाम न लो क्या 'इंशा'-जी सौदाई हैं हैं लाखों रोग ज़माने में क्यूँ इश्क़ है रुस्वा बे-चारा हैं और भी वजहें वहशत की इंसान को रखतीं दुखियारा...

अहल-ए-वफ़ा से तर्क-ए-तअल्लुक़ कर लो पर इक बात कहें कल तुम इन को याद करोगे कल तुम इन्हें पुकारोगे...

सुनते हैं फिर छुप छुप उन के घर में आते जाते हो 'इंशा' साहब नाहक़ जी को वहशत में उलझाते हो दिल की बात छुपानी मुश्किल लेकिन ख़ूब छुपाते हो बन में दाना शहर के अंदर दीवाने कहलाते हो...

जाने तू क्या ढूँड रहा है बस्ती में वीराने में लैला तो ऐ क़ैस मिलेगी दिल के दौलत-ख़ाने में जनम जनम के सातों दुख हैं उस के माथे पर तहरीर अपना आप मिटाना होगा ये तहरीर मिटाने में...

फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता जी से जोड़ सुनाई हो फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी आधी हम ने छुपाई हो...