चुम्बन
लहर रही शशिकिरण चूम निर्मल यमुनाजल, चूम सरित की सलिल राशि खिल रहे कुमुद दल कुमुदों के स्मिति-मन्द खुले वे अधर चूम कर, बही वायु स्वछन्द, सकल पथ घूम घूम कर है चूम रही इस रात को वही तुम्हारे मधु अधर जिनमें हैं भाव भरे हु‌ए सकल-शोक-सन्तापहर!

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