सत्यान्वेषी
फेनिल आवर्त्तों के मध्य अजगरों से घिरा हुआ विष-बुझी फुंकारें सुनता-सहता, अगम, नीलवर्णी, इस जल के कालियादाह में दहता, सुनो, कृष्ण हूँ मैं, भूल से साथियों ने इधर फेंक दी थी जो गेंद उसे लेने आया हूँ [आया था आऊँगा] लेकर ही जाऊँगा।

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