समय
नहीं! अभी रहने दो! अभी यह पुकार मत उठाओ! नगर ऐसे नहीं हैं शून्य! शब्दहीन! भूला भटका कोई स्वर अब भी उठता है--आता है! निस्वन हवा में तैर जाता है! रोशनी भी है कहीं? मद्धिम सी लौ अभी बुझी नहीं, नभ में एक तारा टिमटिमाता है! अभी और सब्र करो! जल नहीं, रहने दो! अभी यह पुकार मत उठाओ! अभी एक बूँद बाकी है! सोतों में पहली सी धार प्रवहमान है! कहीं कहीं मानसून उड़ते हैं! और हरियाली भी दिखाई दे जाती है! ऐसा नहीं है बन्धु! सब कहीं सूखा हो! गंध नहीं: शक्ति नहीं: तप नहीं: त्याग नहीं: कुछ नहीं-- न हो बन्धु! रहने दो अभी यह पुकार मत उठाओ! और कष्ट सहो। फसलें यदि पीली हो रही हैं तो होने दो बच्चे यदि प्यासे रो रहे हैं तो रोने दो भट्टी सी धरती की छाती सुलगने दो मन के अलावों में और आग जगने दो कार्य का कारण सिर्फ इच्छा नहीं होती...! फल के हेतु कृषक भूमि धूप में निरोता है हर एक बदली यूँही नहीं बरस जाती है! बल्कि समय होता है!

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