कैद परिंदे का बयान
तुमको अचरज है--मैं जीवित हूँ! उनको अचरज है--मैं जीवित हूँ! मुझको अचरज है--मैं जीवित हूँ! लेकिन मैं इसीलिए जीवित नहीं हूँ-- मुझे मृत्यु से दुराव था, यह जीवन जीने का चाव था, या कुछ मधु-स्मृतियाँ जीवन-मरण के हिंडोले पर संतुलन साधे रहीं, मिथ्या की कच्ची-सूती डोरियाँ साँसों को जीवन से बाँधे रहीं; नहीं-- नहीं! ऐसा नहीं!! बल्कि मैं जिंदा हूँ क्योंकि मैं पिंजड़े में क़ैद वह परिंदा हूँ-- जो कभी स्वतंत्र रहा है जिसको सत्य के अतिरिक्त, और कुछ दिखा नहीं, तोते की तरह जिसने तनिक खिड़की खुलते ही आँखें बचाकर, भाग जाना सीखा नहीं; अब मैं जियूँगा और यूँ ही जियूँगा, मुझमें प्रेरणा नई या बल आए न आए, शूलों की शय्या पर पड़ा पड़ा कसकूँ एक पल को भी कल आए न आए, नई सूचना का मौर बाँधे हुए चेतना ये, होकर सफल आए न आए, पर मैं जियूँगा नई फ़सल के लिए कभी ये नई फ़सल आए न आए : हाँ! जिस दिन पिंजड़े की सलाखें मोड़ लूँगा मैं, उस दिन सहर्ष जीर्ण देह छोड़ दूँगा मैं!

Read Next