दिन निकलने से पहले
“मनुष्यों जैसी पक्षियों की चीखें और कराहें गूँज रही हैं, टीन के कनस्तरों की बस्ती में हृदय की शक्ल जैसी अँगीठियों से धुआँ निकलने लगा है, आटा पीसने की चक्कियाँ जनता के सम्मिलित नारों की सी आवाज़ में गड़गड़ाने लगी हैं, सुनो प्यारे! मेरा दिल बैठ रहा है!” “अपने को सँभालो मित्र! अभी ये कराहें और तीखी, ये धुआँ और कड़ुआ, ये गड़गड़ाहट और तेज़ होगी, मगर इनसे भयभीत होने की ज़रूरत नहीं, दिन निकलने से पहले ऐसा ही हुआ करता है।”

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