इस रास्ते के नाम लिखो एक शाम और
इस रास्ते के नाम लिखो एक शाम और या इसमें रौशनी का करो इन्तज़ाम और आँधी में सिर्फ़ हम ही उखड़ कर नहीं गिरे हमसे जुड़ा हुआ था कोई एक नाम और मरघट में भीड़ है या मज़ारों में भीड़ है अब गुल खिला रहा है तुम्हारा निज़ाम और घुटनों पे रख के हाथ खड़े थे नमाज़ में आ—जा रहे थे लोग ज़ेह्न में तमाम और हमने भी पहली बार चखी तो बुरी लगी कड़वी तुम्हें लगेगी मगर एक जाम और हैराँ थे अपने अक्स पे घर के तमाम लोग शीशा चटख़ गया तो हुआ एक काम और उनका कहीं जहाँ में ठिकाना नहीं रहा हमको तो मिल गया है अदब में मुकाम और.

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