चांदनी छत पे चल रही होगी
चांदनी छत पे चल रही होगी अब अकेली टहल रही होगी फिर मेरा ज़िक्र आ गया होगा बर्फ़-सी वो पिघल रही होगी कल का सपना बहुत सुहाना था ये उदासी न कल रही होगी सोचता हूँ कि बंद कमरे में एक शमअ-सी जल रही होगी तेरे गहनों सी खनखनाती थी बाजरे की फ़सल रही होगी जिन हवाओं ने तुझ को दुलराया उन में मेरी ग़ज़ल रही होगी

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