ये रौशनी है हक़ीक़त में एक छल, लोगो
ये रौशनी है हक़ीक़त में एक छल, लोगो कि जैसे जल में झलकता हुआ महल, लोगो दरख़्त हैं तो परिन्दे नज़र नहीं आते जो मुस्तहक़ हैं वही हक़ से बेदख़ल, लोगो वो घर में मेज़ पे कोहनी टिकाये बैठी है थमी हुई है वहीं उम्र आजकल ,लोगो किसी भी क़ौम की तारीख़ के उजाले में तुम्हारे दिन हैं किसी रात की नकल ,लोगो तमाम रात रहा महव-ए-ख़्वाब दीवाना किसी की नींद में पड़ता रहा ख़लल, लोगो ज़रूर वो भी किसी रास्ते से गुज़रे हैं हर आदमी मुझे लगता है हम शकल, लोगो दिखे जो पाँव के ताज़ा निशान सहरा में तो याद आए हैं तालाब के कँवल, लोगो वे कह रहे हैं ग़ज़लगो नहीं रहे शायर मैं सुन रहा हूँ हर इक सिम्त से ग़ज़ल, लोगो.

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