चरण गहे थे, मौन रहे थे,
चरण गहे थे, मौन रहे थे, विनय-वचन बहु-रचन कहे थे। भक्ति-आंसुओं पद पखार कर, नयन-ज्योति आरति उतार कर, तन-मन-धन सर्वस्व वार कर, अमर-विचाराधार बहे थे। आस लगी है जी की जैसी, खण्डित हुई तपस्या वैसी, विरति सुरति में आई कैसी, कौन मान-उपमान लहे थे। ठोकर गली-गली की खाई, जगती से न कभी बन आई, रहे तुम्हारी एक सगाई, इसी लिए कुल ताप सहे थे।

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