पाप तुम्हारे पांव पड़ा था
पाप तुम्हारे पांव पड़ा था, हाथ जोड़कर ठांव खड़ा था। विगत युगों का जंग लगा था, पहिया चलता न था, रुका था, रगड़ कड़ी की थी, सँवरा था, पथ चलने का काम बड़ा था। जड़ता की जड़तक मारी थी, ऐसी जगने की बारी थी, मंजिल भी थककर हारी थी, ऐसे अपने नाँव चढ़ा था। सभी उहार उतार दिये थे, फिरसे पट्टे श्वेत सिये थे, तीन-तीन के एक किये थे, किसी एक अपवर्ग मढ़ा था।

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