सुरतरु वर शाखा
सुरतरु वर शाखा खिली पुष्प-भाषा। मीलित नयनों जपकर तन से क्षण-क्षण तपकर तनु के अनुताप प्रखर, पूरी अभिलाषा। बरसे नव वारिद वर, द्रुम पल्लव-कलि-फलभर आनत हैं अवनी पर जैसी तुम आशा। भावों के दल, ध्वनि, रस भरे अधर-अधर सुवश, उघरे, उर-मधुर परस, हँसी केश-पाशा।

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