फूटे हैं आमों में बौर,
फूटे हैं आमों में बौर, भौंर वन-वन टूटे हैं। होली मची ठौर-ठौर, सभी बन्धन छूटे हैं। फागुन के रंग राग, बाग-वन फाग मचा है, भर गये मोती के झाग, जनों के मन लूटे हैं। माथे अबीर से लाल, गाल सेंदुर के देखे, आँखें हुई हैं गुलाल, गेरू के ढेले कूटे हैं।

Read Next