चंग चढी थी हमारी,
चंग चढ़ी थी हमारी, तुम्हारी डोर न टूटी। आँख लगी जो हमारी, तुम्हारी कोर न छूटी। जीवन था बलिहार, तुम्हारा पार न आया, हार हुई थी हमारी, तुम्हारी जोत न फूटी। ज्ञान गया ऐ हमारा, तुम्हारा मान नया था, हाथ उठा जो हमारा, तुम्हारा रास न लूटी। पैर बढ़े थे हमारे, तुम्हारे द्वार खुले थे, दर्शन चाहा हमारा, तुम्हारी, जीवन-घूटी।

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