जिनकी नहीं मानी कान
जिनकी नहीं मानी कान रही उनकी भी जी की। जोबन की आन-बान तभी दुनिया की फीकी। राह कभी नहीं भूली तुम्हारी, आँख से आँख की खाई कटारी, छोड़ी जो बाँधी अटारी-अटारी नई रोशनी, नई तान; रही उनकी भी जी की, जिनकी नहीं मानी कान।

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