आँख लगाई
आंख लगाई तुमसे जब से हमने चैन न पाई। छल जो, प्राणों का सम्बल हुआ, प्राणों का सम्बल निष्कल हुआ, जंगल रमने का मंगल हुआ, ज्योति जहाँ वहाँ अंधेरी घिर आई। राह रही जहाँ वहाँ पन्थ न सूझा, चाह रही जहाँ वहाँ एक न बूझा, ऐसी तलवार चली कुनबा जूझा, बन आई वह कि दूर हुई सगाई।

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