रे, न कुछ हुआ तो क्या ?
रे, कुछ न हुआ, तो क्या ? जग धोका, तो रो क्या ? सब छाया से छाया, नभ नीला दिखलाया, तू घटा और बढ़ा और गया और आया; होता क्या, फिर हो क्या ? रे, कुछ न हुआ तो क्या ? चलता तू, थकता तू, रुक-रुक फिर बकता तू, कमज़ोरी दुनिया हो, तो कह क्या सकता तू ? जो धुला, उसे धो क्या ? रे, कुछ न हुआ तो क्या ?

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